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चौलुक्य चंद्रिका ]
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दिया । अतः इन्द्रको स्वातंत्र्य सुखभोगका अवसर न मिला। स्वातंत्र्यकी आशा के साथही उस अपने नश्वर शरीरका संबंधभी छोड़ना पड़ा ।
इन्द्रके पश्चात् गुजरातके राष्ट्रकूट सिंहासन पर उसका बड़ा पुत्र कर्कराज बैठा । बसने शक ७३४ के पूर्व गब्दी पर बैठतेही अपने पिता की " प्रधान शाखाके साथ विरोध” नीतिका परित्याग कर सहयोग मार्गका अवलम्बन किया । और अपने चचा गोविंद तृतीयकी सहायतामें अपनी सेनाके साथ उपस्थित हुआ । जब गुर्जर नरेशने मान्यखेटके श्राधीन मालव नरेशके पर आक्रमण किया तो कर्क अपनी सेनाके साथ रणमें उपस्थित हो उसकी रक्षाकी थी। पुनश्च जब शक ७३६ मे गोविंद तृतीयकी मृत्यु पश्चात् राजकुमार श्री वल्लभ सर्व अमोघवर्षक उत्तराधिकारका विरोध उसके संबंधियों के संकेत से सामन्तोंने किया तो कर्क अपनी सेनाके साथ आगे बढ़ उनका दमन कर उसे सिंहासन पर बैठाया। जिसकी कृतज्ञता में उसने व.कको संभवतः उत्तर कोकणका समुद्र तटवर्ती भूभाग प्रदान किया। संभवतः शक ७४८ के आसपास कर्ककी मृत्यु हुई और उसके दोनों पुत्रों धुबराज और दन्तिवर्मा के अल्प वयस्क होनेके कारण उसका छोटाभाई गोविंद गब्दी पर बैठा ।
गोविंदने लाट वसुन्धराका उपभोग शक ७४८ से ७५६ पर्यन्त किया । पश्चात् कर्कका ज्येष्ठ पुत्र भुबराज बयस्क होने पर गद्दी पर बैठा यह ज्ञात नहीं कि गोविंदने अपनी इच्छासे युबराजको वयस्क होने पर राज्यभार दे दिया था अथवा उसने बल पूर्वक अपने पैतृक अधिकार को प्राप्त किया था | भुष प्रथमको गद्दी पर आने पश्चात् प्रधान शाखाके साथका सौहार्द टूट गया । गुजरात और दक्षिणके दोनों ( प्रधान और शाखा) राष्ट्रकूट वंशपुनः विग्रह जालमें फंस गये मान्यखेटके राष्ट्रकूटराज श्री वल्लभ अमोघ वर्षके लेखोंसे प्रगट होता है कि उसने अठिका पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दिया था । पुनश्च इस विग्रहका स्पष्ट परिचय ध्रुव प्रथमके पुत्र ध्रुव द्वितीय के बगुमरा वाले शक ७८६ के लेखमें मिलता है। उक्त लेखसे ज्ञात होता है कि ध्रुब प्रथमने श्री बल्लभ की सेनाके साथ लडता हुआ घोर रूपसे आहत हो रणक्षेत्रमें अपने नश्वर शरीरका परित्याग किया था ।
भुव प्रथमकी मृत्युके पश्चात् उसका पुत्र अकालवर्ष गद्दी पर बैठा और आक्रमणकारी श्रीलकी सेना को पराभूत कर अपने पैतृक अधिकारको स्वाधीन न किया । अकालवर्षके
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