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[ प्राक्कथन
इन शासन पत्रोंके पर्यालोचन से प्रगट होता है कि इनका अधिकार वलसाड़ दक्षिणोत्तर से लेकर खेड़ा पर्यन्त था । परन्तु इनकी पूर्वीव सीमा ज्ञात नहीं है कर्कके वरौवा से प्राप्त शक ७३४ वाला शासन वटपाद्रक के दानका - नवसारीसे शक ७३८ वाला शासन जो 'खेटपुरमें प्रचारित किया गया था, शर्मा पत्रक ग्रामके दानका और सूरत से प्राप्त शक ७४३ वाला शासन पत्र जो वन्किका से प्रचारित किया गया था, नागसारिकाके जैन मंदिर को अम्बा पाटक ग्राममें कुछ भूमि देनेका उल्लेख करता है। गोविंदका कावीसे प्राप्त शक ७४९ वाला शासन पत्र जो भृगुकच्छसे प्रचलित किया गया था, कोटिपुरके सूर्य मंदिरको ग्राम दानका वर्णन
है | ध्रुव प्रथम वरोदासे प्राप्त शक ७५७ वाला शासन पत्र जो खेटपुरके समीप वाले सर्व मंगला नामक स्थानसे प्रचारित किया गया था, और वदरसिद निवासी योग नामक को ग्राम दानका उल्लेख करता है । ध्रुव द्वितीयका बगुमरासे प्राप्त शक ७८६ वाला लेख जो भृगुकच्छ से शासित था, परहृनाकके ब्राह्मणको दान देनेका वर्णन करता है । इसका बरौदावाला लेख जो भृगुकच्छसेही शासित है, मही नदीके समीपवर्ती कोनवाली नागभान ग्रामके कपालेश्वर महादेव मन्दिरके दानका वर्णन करता है । अन्ततो गत्वा कालवर्ष कृष्णका बगुमसे प्राप्त शक ८१० वाला शासन पत्र जो अकुरेश्वर से शासित है । ११६ ग्रामवाले वारिहावि (वरीआव) विषयके का विस्थल ( कोसाड ) गाम निवासी त्राह्मरंगों को मूमिदान देने का वर्णन करता है।
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पुनश्च इन शासन पत्रों पर दृष्टिपात करने से प्रगट होता है कि गुजरातके इन राष्ट्रकूटोंका इतिहास निम्न प्रकारसे है। गुजरातके राष्ट्रकूट वंशके संस्थापकइन्द्रराजको अपने • बड़े भाई गोविंद राजकी कृपा से लाट प्रदेशका राज्य शक ७३० में मिला । परन्तु इसने प्राप्त राज्यलक्ष्मीका उपभोग केवल चार वर्ष किया इसी थोड़ी अवधिर्मेभी इसे सुख और शान्ति प्राप्त नहीं हुई। संभवतः इसपर गुर्जर नरेशने आक्रमण किया था । परन्तु इसने उसे मार
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भगाया । अपनी इस विजयसे उन्मत्त हो स्वतंत्र बननेके प्रयोगमें लगा । इसे अपने इस कार्य में प्रवृत्त होनेका अवसर भी मिल गया । क्योंकि राष्ट्रकूटवंशी अन्यान्य सामन्तोंने प्रधान शाखाका विरोध किया । यह झटपट उनके साथ मिल गया । परन्तु राजकुमार श्री वल्लभ (सर्व अमोघ - वर्ष) ने स्वजातीयोंकी सम्मिलित सेनाका दमन कर इस विद्रोह अभिको जनमतेही शान्तकर
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