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[ लाट वासुदेवपुर खण्ड
सिद्धे श्वर विशाल
धवल
क्षेम राज
वा सु देव
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भीम देव कृष्ण रा ज कुम्भ दे व वंशावली पर दृष्टिपात करने से साम्यता अपमे आम प्रकट होती है। किन्तु समय में कुछ अन्तर पड़ता है । हमारी समज में समय का अन्तर का परिहार अनयास ही हो सकता है। क्योंकि वसन्तपुरीकी गदी पर मूलदेव नही बैठा था। अतः उसके पुत्र कर्ण और उसके भाई कृष्ण देवकी समकालीनता ठहरती है। एवं कर्ण के तीनों पुत्रों ने राज्य किया था । मतः उनको मी वश श्रेणी में मानना होगा इस प्रकार मंगलपुर और वसन्तपुर के दोनों राजवंशों के राजाओ की समकालिनता निम्न प्रकार से होगी :
सम का लिन ता वा सन्त पुर
मंगलरी कण दे व १२७६-१२६८
कृष्ण रा ज १२७१-१२६३ सि द्वेश्वर १२६८-१३२१
उद य रा ज १२६३-१३१६ वि श ल १३२१-१३४३
रुद्र दे व १३१६-१३३८ धवल १३४३-१३६६
क्षे मग ज १३३८-१३६० वासुदेव १३६७
कृष्ण रा ज १३६० हमारी इस प्रशस्ति की समकालीनता में किसी को शंका नहीं हो सकती क्योंकि इसमें बहुत ही थोड़ा समय का अन्तर पड़ता है। अब यदि उक्त अन्तर को दूर करने के लिये हम कृष्णराज का ७ वर्ष समय पूर्व से हठाकर और पीछे ले जावे और दोनों अर्थात कृष्णदेव
और कर्णदेव दोनों को एक समय १२७६ में मान लेवे तो वह अन्तर अनायास ही मिट जाता है। इन बातों को लक्ष कर मंगलपुरीके कृष्णराज प्रथम को वसन्तपुर के वीरदेव का द्वितीय पुत्र और कर्णदेव का चाचा घोषित करते हैं । परन्तु इसके-कुम्भदेव के लेख में कृष्णराजकी वंशावली का प्रारंभ आड़े पड़ता है। इसका समाधान यह है कि अन्यान्य राज्यवंशों का इतिहास ऊचे स्वरमें घोषित करता है कि भाई और पिता से विद्रोह करने वाले के वंशज पूर्व की वंशावली का उल्लेख नहीं करते । इसका प्रमाण आबू के परमारों के इतिहास में विशेष रूपसे पाया शाता है। और इसकी मलक अजमेर के चौहानों के इतिहास में मी पाई जाती हैं । मंगलपुरी के कृष्णराज को बसन्तपुर के वीरदेव का द्वितीय पुरा सिद्ध करने पश्चात मंगलपुर-बसन्तपुरकी वंशावली निम्न प्रकार से होगी।
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