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चौलुक्य चन्द्रिका ]
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परब बनवाया और नानंगोला गांव में ३२००० नारियल के वृक्ष दान में दिये तथा गोबर्धन के रश्मी पर्वत में गुफा और पोढिया बनवाया ।
उपवदन्त की प्रस्तुत प्रशस्ति से स्पष्ट प्रकट होता है कि कोंकरण से लेकर सीधे उत्तर में मालवा के दशपुर अर्थात वर्तमान मन्दसौर और मन्दसोर से सीधे पश्चिम में आबू पर्वतमाला के नीचे दक्षिण में बहने वाली वर्णासा (वर्तमान बनास ) नदी तथा आबुसे पश्चिमोत्तर में अवस्थित सौराष्ट्र देशके प्रभास क्षेत्र पर्यन्त प्रसिद्ध २ स्थानों और नदियों का इसमें उल्लेख किया गया है । प्रशस्ति में सर्व प्रथम वर्षासा नदी का उल्लेख है इसके बाद वर्गासा से दक्षिण पश्चिम अवस्थित प्रभास क्षेत्र - प्रभास के बाद उसके समय में खाडी के द्वितीय तट पर पूर्व दिशा में अवस्थित नर्मदा के प्रसिद्ध नगर भृगुकच्छ (बर्तमान भरोच) का उल्लेख है। भरोचके बाद इबा - पारदातापी - दमरण - करवेणा - दहनुका का वर्णन है । इनमें तापी नदी का परिचय सूर्यप्रकाशवत सर्वविदित है । पारदा — दमरण और दहनु का वर्तमान थाणा जिला में बहने वाली नदियां हैं। वे वर्तमान समय पार - दमणगंगा और ढाहगु नामसे प्रसिद्ध है । इनका थाणा जिल। में निम्न प्रकार से अबस्थान है। ढाहणु सफसे उत्तर में दमणन्गूगा और दमणगंगा से उत्तर में पार नदी है।
प्रशस्ति कथित पारदा नदी पारडी नामके पहाड़ के सभीप बहती है । बी. बी. एन्ड सी, आइ. रेलवे के पारडी नामक स्टेशन से उत्तर में बलसाड है । बलसाड और बीलीमोरा के बीच कावेरी नदी रेलवे लाइन को पार कर कुछ दूर समुद्रभिमुख गमन करने के पश्चात अम्बीका नदी से मिलती है । अम्बीका को पार करने के पश्चात और उत्तर में जाने पर सूरत के पास तापी बहती है । दाणु के दक्षिण में प्रशस्ति का सुरपारंग वर्तमान सुपारा है । अतः हम निःशंक हो कर कह सकते हैं कि प्रशस्ति में सुपारा और भरुच के मध्यवर्ती नदियों का उल्लेख है । कथित नदियों में दमण और तापी का नाम आज भी ज्यों का त्यों है । दाहणुका और पारदाके नाम में परिवर्तन हुआ है। संप्रति दाहक का ढाक और पारदा का पार बन गया है। यदि देखा जाय तो प्रशस्ति कथित इन दोनों नदिओं के नाम का अताक्षर मात्र छुटकर वर्तमान नाम बना है। वरना उनमें कुछ भी अन्तर नहीं है ।
कुछ
पार और तापी नदी के मध्य में बहने वाली कावेरी — अम्वीका – पूर्णा और भीडोल नामक चार नदियां हैं । इनमें से कावेरी को मेरुतुन्ग ने कलवेणा के नाम से उल्लेख किया है । प्रशस्ति कथित कुलसेनी और मेरुन्तुग के कलवेणी नाम में अधिक साम्यता पाई जाती है। बास्तब में कलवेणा ओर करवेणी में कुछ भी अन्तर नहीं है। क्योंकि संस्कृत साहित्य में रकार के स्थान में लकार और लकार के स्थान मे रकार का प्रयोग किया जाता है । उसी प्रकार वेण
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