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[लाट वासुदेवपुर का
प्रस्तुत प्रशस्ति शंकरानन्द स्वामी के शिष्य कृष्णानन्द कृत किसी शिव मन्दिर की प्रशस्ति है। यह वर्तमान समय अजरामील-नापक तापी तटपर एक पीपल के नीचे पड़ी है। मील लोग इसको देवता मात. पूजा करते हैं। प्रशस्ति की.. शिला ६॥ हाथ लंबी १॥ हाथ चौडी और १॥ वालिस्त के करीब मोटी है । चौड़ाई बाले अंश में सात पंक्तियां खुदी हैं । लेख की लिपि देवनागरी और भाषा संकत है। प्रथम और सातवीं पंक्तियां गद्यमय
और शेष पांच पंक्तियां मनुष्टुप छंदमयाँ है ।। श्लोकों की संख्या पांचा है। प्रारंभिक गद्य में गणेश शिव और गुरु को नमस्कार प्रथम-श्लोक के ग्राम भार में साती के समीप पराकाशी नामक क्षेत्रमा वर्णन है। प्रथम-दो कोक के द्वितीय भा और द्वितीय दो श्लोक में शंकरानंद स्वामी की प्रशंशा है। तीसरे श्लोक में लिखा गया है कि शंकरानन्द के शिष्य कृष्णानन्द ने वर्षांऋतु में वासन्तपुर निवास किया था। चौथे श्लोकमें वर्णन किया है कि कृष्णानंदने चौलुक्य राज्य की पटतणीको उपदेश कर धन प्राप्त किया और उक्त धनसे शिव मन्दिर बनाया। पांचवें श्लोक में लेखक तिथि है। अन्तिम गद्य में तिथि अंक देने पश्चात शुभ कमना के वाक्य हैं ।
लेग में राना का नाम नहीं दिया गया है। परन्तु लेखकी तिथि विक्रम संवत १४३८ दी गई है। अतः इससे सिद्ध होता है कि कासन्तपुर का चौलुक्य वंश १४३८ पर्यन्त शासन करता था। वासन्तपुर के राजा कर्णदेव का लेख हम पूर्व में उधृत कर चुके हैं। उसकी तिथि १२७७ है। उक्त लेख के समय से १४३८ पर्यन्त १६१ वर्ष का अन्तर पड़ता है। अतः इस अवधि में वसन्तपुर बह गादी पर कमसेकम ६ राजा होना चाहिए । प्रशस्ति कथित अपरा काशी तामिया है। प्रकाश क्षेत्र का तापी पुरा में बहुत महात्म्य लिखा है । इसकी तुलना बरानसी से की गई है। प्रकाशा तामा के उत्तर तह पर है। प्रकाश में पुरातन नगर का अवशेष है । एवं आजभी सैंकड़ों की संख्या में मन्दिर हैं । प्रकाश। ग्राम से एक मील की दूरी पर प्रकाश क्षेत्र है। जहां पर विश्वनाथ, केदार और पुष्प दन्तेश्वरके गगनस्पर्शी मन्दिर बने हैं।
और तापीका घाटा है। वाराणसी की छटा दीलली है। केदार मन्दिरसे कुछ उत्तर हट कर सहिमालिस हैं। इनमें १७ बडे छोटे और शेष प्रोटले हैं। यहांपर भारती बाबा की बहुत ख्याति है। इनमें का विशाल मन्दिर भारतीबाबा की सम्पधि बताई जाती है। इन समाधि मन्दिरीमदशा बिगड़ रही है। इन मन्दिरों के अवशेषों में ईट पत्थर हटाने पर हमें तीन महियामिली जिनएर लेख खुले हैं।"
प्रयम लेखू बैशान तृतीया, विक्रम संवत १४२६ का है। इससे प्रगट होता है कि तापी तटवर्ती पराकाशा के केदार मन्दिर में शंकरानंद का स्वर्गवास हुआ था दूसरा लेख माघ शुक्लाम
स प्रगट हरि पराकाशी केदार मन्दिर में कृष्णानंदकी मृत्यु हुई थी। तीसरा लेख वैशाख कृष्ण षष्ठी विक्रम १५०१, अथवा १५११ का है। इससे प्रगट होता है कि कृष्णानंद कशष्य आत्मानद की मृत्यु हुई थी। इन लेखों से कृष्णानंदापी प्रासयताराना निवासमा समर्थन होता है।
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