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चौलुक्य चन्द्रिका ] .
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शिला प्रशस्ति. स्वस्ति श्री । श्रीगणेशाय नमः । श्री साम्ब शिवाय नमः । श्री गुरु चरणाविन्दाभ्यां नमः।
आसत्पु!। परा काश्यां क्षेत्रे तपत्य. सन्निधौ ॥ महात्मा योगयुक्तात्मा, वेद वेदान्त पारगः ॥१॥ उपदेष्टा ज्ञान मार्गम्य लोकानां हितः कालया। सक्षाच्छंकर रूपस्तु: श्रीः मकर भारती ॥२॥ तकियोह मतियारः कृष्णा नादः भिमो मुनिरः । वासन्तपुरे निवमन वर्षायां यति धर्मना॥३॥ चौलुक्य राज माहिषी मुपदिष्य शिवाज्ञया । सम्प्राप्य बहुलवार्थ कृतोऽयं शिव मंदिरं ॥४॥ व स्वग्नि चेति वेदा विक्रमाती त वत्सरे ॥
मधुमाले सिते पक्ष द्वादश्यां भैम, आसरे ॥५॥
मातोपि.१४३८ चैत्र सुदी १२ भौमवारे समाप्तोऽयं शिव.मन्दिर, मिति । सुकृतोऽयं, फलमा भूयात.। कल्याणमस्तु । शमितिः॥ .
छायानुवाद ___ कल्याण हो । श्री गणेश को नमस्कार । श्री साम्ब शिवको नमस्कार! श्री गुल चरणविन्दों को नमस्कार !
पूर्व समय तापी तटवर्ती अपराकाशी (परा काशी) नामक क्षेत्र में स HERA शकर स्वरूप योंगयुक्त वेदवेदंग पारगामी संसार के कल्यावज्ञानाउपडेटाश्रीः शरभारी नामक महात्मा निवास करते थे।
उक्त महात्मा शंकरानन्दके शिष्य कृष्णानन्द ने संप्रति वर्षा ऋतु में पाया नियमानुसार वासन्तपुर में निवास करते समय चौलुक्य राज्य महिषी को भगवान शंकर की आज्ञा से उपदेश देकर बहुत सा धन प्राप्त कर इस शिव मन्दिर का निर्माण किया है। ३-४॥
वसु = आठ, अग्नि = ती वे कार और = एक अर्थात १४३८ विक्रम चैत्र शुक्ल द्वादशी भौमबार । अक से मी १४३८ चैत्र सुदी १२ भौम वार । यह सुन्दर कृत फलदायक हो । कल्याण हो । इति ।
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