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[ लाट वासुदेवपुर खण्ड हमारे पाठकों को ज्ञात है कि विक्रमादित्यको बेंगी मंण्डलके (पूर्वीय) चौलुक्यों के साथ वैमनस्य था। सोमेश्वर द्वितीयने मी बेंगी के चौलुक्य राज राजेन्द्र (बिल्हण के राजी) के साथ मैत्री सम्बंध स्थापित किया था । एवं जब विक्रम राजेन्द्र पर आक्रमण करने गया तो सोमेश्वरने विक्रम की सेना पर पृष्ट प्रदेशसे आक्रमण किया था । विक्रम और राजेन्द्रके इस विग्रहका कारण राजेन्द्रका काज्जीवर के चौल राजकुमार अपने ममेरे भाई और विक्रम के साले को राजगद्दी से उतार चौल देशके राज्यको अपने राज्य में मिलाना था। विक्रम प्रथम राजेन्द्रको कांची से हटाने में समर्थ हुआ था। किन्तु राजेन्द्रने अन्त में चौल राज्यको अपने अधिकार में लाने में समर्थ हुा । अतः बिक्रम और राजेन्द्र में बैमनस्य अग्नि के अस्तित्वका होना स्वभाविक है । अव यदि हम यह ज्ञान प्राप्त कर सके कि विक्रम और जयसिंहके युद्ध समय बेंगी चौल साम्रज्यपर कौन अवस्थित था । और यदि हम जान सके कि उस समय बेंगी चौलका राजा राजेन्द्र था। तो जयसिंहका उसके पास आश्रय प्राप्त करने के लिये जाना संभव हो सकता हैं। बेंगी चौल की राजगदी पर राजेन्द्रका राज्याभिषेक शक संवत ६८५ में हुआ था । और उसका राज्य काल शक १०५४ पर्यन्त ५० वर्ष है । अतः विक्रम और जयसिंहके युद्धकाल शक १००८ में राजेन्द्र बेंगी चौल संयुक्त राज्यका भोक्ता और विक्रमका महा कट्टर श, था।
हमारी धारणा केवल अनुमानकी पोच भीति पर ही अवलम्बित नहीं है। वरण इसके आधारका आभास बिल्हणके कथन "द्रविडके राजाके साथ मैत्री स्थापित करनेका विचार होरहाहै" में मिलता है। यद्यपि बिल्हणने द्रविडके राजाका नाम नहीं बताया है तथापि विल्हण कथित द्रविड राजा राजेन्द्र के होनेमें कणिका मात्रभी संदेह नहीं क्योंकि राजेन्द्रका अधिकार द्रविड देशके पांचों भागों पर शक संवत ६६४ -६५ में हो गया था। अतः हम कह सकते हैं कि जयसिंह युद्धमें पराजित होने पश्चात संभवतः राजेन्द्र की राज्यधानी कांचीपुरी के तरफ जंगली मार्ग से अग्रसर हुआ।
विक्रम और जयसिंहके युद्धस्थलसे समीपमें ही राजेन्द्र के वेंगी चौल राजकी सीमा लगी थी। जहां पर कृष्णा उपत्यका होकर जाना अत्यंत सुगम था । पुनश्च राजेन्द्र के राज्य में जाने के अतिरिक्त जयसिंह के लिये दूसरा मार्ग भी नहीं था। जहां पहुंचते ही विक्रम के आक्रमण की कुछ भी संभावना न थी। हां इस संभावना के प्रतिकूल जयसिंह के पुत्र विजय का प्रस्तुत लेख किसी अंशमें पडता है। क्योंकि इस लेखसे जयसिंह के बेंगी चौल साम्राज्य में श्राश्रय प्राप्त करने का कुछ भी आभास नहीं मिलता। इस लेखमें स्पष्ट रूपेण लिखा है कि " जयसिंह जब जंगलों में पाण्डवों के समान कालक्षेप कर रहा था तो, उसके पुत्र विजयसिंह ने अपने पैतृव्य के राज का अतिक्रमण कर अपने बाहुबलसे नवीन भूभाग अधिकृत कर मंगलपुरी में बाराह लाक्षण को स्थापित किया" ।
हां ठीक है ? परन्तु इस उक्ति से यह भी सिद्ध नहीं होता कि जयसिंह ने पराजित होने पश्चात् बेंगी साम्राज्य में आश्रय नहीं लिया था। हमारी समझमें युद्धमें पराजित मनुष्य को
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