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चौलुक्य चंद्रिका]
११४ पुलकेशी द्वितीय हुआ । पुलकेशी द्वितीय मी अपने पितामहके समान प्रचण्ड योद्धा और भारत वर्षका एकछत्र अधिपति हुश्रा । पुलकेशी द्वितीयकी राजसभामें ईरानके प्रसिद्ध राजा खुशरुका राजदूत रहता था। उक्त पारशियन राजदूत के आगमनका द्योतक करनेवाला एक चित्र ऐजन्तपुरीकी गुफा चित्रित किया गया है।
पुलकेशीने अपने छोटे भाईनों, विष्णुवर्धन और जयसिंह एवं बुधवर्मको एक एक प्रान्त प्रदान किया था। विष्णुवर्धनको वेंगी मण्डल प्रान्त - कृष्णा और गोदावरी नामक नदिओंके मध्यवर्ती देश - दिया । जहां उसके वंशजोंने लगभग छव सौ वर्ष राज्यभोग किया। और पश्चात् समय पूर्वीय चौलुक्य नामसे प्रसिद्ध हुये । जयसिंहको पुलकेशीने वर्तमान नाशिकके चतुर्दिकवर्ती भूभाग दिया था। जहां उसके पुत्रादिने राज्य किया परन्तु उसका वंश अधिक दिनों नहीं चला। चौथे भाई बुधवम को वर्ततान कोलाबा जिल्ला के चतुर्दिकवर्ती प्रदेश दिया था । बुधवर्मका वंशभी लोप हो गया क्योंकि उसकामी कुछ परिचय नहीं मिलता । हां, बुधवर्मका एक शासन पत्र कोलाबा जिल्लाके पिनुक नामक स्थानसे मिला है जिससे प्रकट होता है कि वह अपने भतीजा वातापि पति विक्रमादित्यके समय तक जीवित था ।
पुलकेशीको आदित्यवमा-चन्द्रादित्य-विकमादित्य और जयसिंहवर्मा नामके चार पुत्रों का होना पाया जाता है। आदिल्यवर्मका परिचय उसके अपने ताम्रपत्रसे और चंद्रादित्यका परिचय उसकी महिषी महादेवी विजय भट्टारीका के शासन पत्रों से मिलता है। संभवतः आदित्यवर्माकी मृत्यु पिताके समयमेंही हो गई थी। और चंद्रादित्य मी कदाचित एक पुत्रको छोडकर कालगत हुआ था। चंद्रादित्यके शिशु पुत्रकी माता (चंद्रादित्यकी रानी) विजय भट्टारिकादेवी शासन करती थी। परन्तु शासन करते समयमी विजय भट्टारिकाने विक्रमादित्य के राज्यका उल्लेख किया है। अतः संभवना होती है कि सिंहासनपर वास्तवमें विक्रमादित्यही बैठा । विक्रमके समयसे वातापिके चौलुक्य पश्चिम चौलुक्यके नामसे प्रख्यात हुए। विक्रमने अपने छोटेभाई जयसिंहको लाट देशका राज्य दिया जहां उसने और उसके वंशजोने नवसारिका (नवसारी) को राज्यधानी बना लगभग १०० वर्ष पर्यन्त राज्य किया।
विक्रमादित्यके पश्चात् क्रमशः वातापिके सिंहासन पर उसका पुत्र विनयादित्य, पौत्र विजयादित्य द्वितीय तथा प्रपौत्र किर्तीवर्मा द्वितीय बैठा। कीर्तिवर्मा के समय चौलुक्य राज्यलक्ष्मीका अपहरण हुश्रा और वातापि साम्राज्य राष्ट्रकूटोंके अधिकार में चला गया। लगभग दौसो वर्ष पर्यन्त वातापि राष्ट्रकूटोंके अधिकार में रहा । अन्तमें तैलप द्वितीयने अपने वंशकी राज्यलक्ष्मीका उद्धार कर वातापी को पुनः अपनी राज्यधानी बनायी। तैलपने शक ८९५ से ११६ पर्यन्त राज्य किया ।
. चौलुक्यराज्य उद्धारक तैलपके बाद उसका पुत्र सत्याश्रय ने शक १६ से १३० पर्यन्त राज्य किया । अनन्तर उसका भतीजा विक्रमादित्य पांचवा गद्दी पर बैठा। विक्रमादित्यकी कौथुम
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