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[ लाट नन्दिपुर खण्ड
तुम्बर होसरू इमली शिला प्रशस्ति
विवेचन :
प्रस्तुत प्रशस्ति तुम्बर होसरु ग्राम की उत्तर दिशा में एक इमली के वृक्ष के नीचे उत्कीर्ण है । तुम्बर होसरु ग्राम के संबंध में हम पूर्बोद्धृत प्रशस्ति के विवेचन में विचार कर चुके है। प्रशस्ति का शिला खंड ७४२.१/२ है। और लेख पंक्तियों की संख्या ५१ है । इसकी लिपि हाले कानाडा और भाषा संस्कृत और कनाडी मिश्रित है। प्रशस्ति में पूर्ववत् विक्रमको अधिराज और वीरनोलम्ब जयसिंह को युवराज वर्णन किया गया है। इन दोनों के अतिरिक्त जयसिंह के सामन्त तथा दण्डाधिप बलदेव का उसके प्रतिनिधि रूपसे वनवासी प्रदेशका शासन राज्यधानी वलीपुर में रह कर करना लिखा गया है । प्रशस्ति का उद्देश्य अन्यान्य मंत्रियों और सामन्तों के आग्रहसे कर माफ करने का वर्णन है।
प्रशस्ति के पर्यालोचनसे विक्रम और जयसिंह मे परम सौहार्य प्रकट होने के साथ ही जयसिंह के प्रचण्ड शौर्य का दिग्दर्शन होता है। प्रशस्ति से प्रकट होता है कि उसने दाहल; लाट और अन्यान्य नरेशोंको विजय किया था और उससे कोकण पति सशंकित था। प्रशस्ति में जयसिंह से पराभूत किसीभी राजा का नाम नहीं दिया गया है। अतः यह निश्चिय के साथ नहीं कहा जा सकता कि कथित देशों के किस राजा को उसने पराभूत किया था।
जयसिंह के समय कोकण में अनेक छोटे मोटे राजबंश राज्य करते थे । गोवा के कदमवंशी, कोल्हापुर और करहाट के शिल्हरा एवं उत्तर कोकण ( स्थानक ) के शिल्हरा । इनके अतिरिक्त अन्यान्य बंश संभूत अनेक छोटे मोटे माण्डलीक 'सामन्तो का आधिपत्य था। तथापि हम कोकण पति से गोवा के कदमवंशी जयकेशी का उल्लेख मानते हैं। हमारे इस प्रकार माननेका कारण यह है कि विक्रमादित्य के साम्राज्य में उसका प्राबल्य था और वह अपना एकाधिपत्य स्थापित करने में प्रवृत्त था । अपने इस मनोरथको सफल करने के लिये आकाश पाताल के कुलावे मिला रहा था। उसके इस विचार का बाधक यदि कोई था तो वह जयसिंह था। पुनश्च इन दोनों में मनोमालिन्य पूर्व से चला आ रहा था। अतः जयसिंह की शक्ति वृद्धि और शौर्य का समुद्रवत प्रबल प्रचण्ड प्रवाह देख उसका सशक होना स्वभाविक है ।
भागे चल कर प्रशस्ति जयसिंह के कोपाग्नि में दाहल राज्य का भस्म होना प्रकट करती है। वाइल चेदी राज्य का नामान्तर है। चेदीकी राज्यधानी उस समय त्रिपुरी नामक नगरी थी। संप्रति त्रिपुरी को तेवर कहते हैं और यह मध्य प्रदेश के जबलपुर नामक जिला के अन्तर्गत है। सहल नरेशों के साथ चौलुक्यों के सन्धि विग्रह का परिचय हमें अनेक वार मिल चुका है । सर्व
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