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सोलुक्य चंद्रिका ]
तुम्बर होसरू इमली प्रशस्ति
छायानुवाद। भगवान शंकर कल्याण करें। कल्याण हो । जब सकल संसार के अधारभूत पृथ्वी पति . महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक सत्याश्रय कुल तिलक चौलुक्य वंश विभूषण श्रीमान श्रीभुवनमल्ल देवका उत्तरोत्तर वृद्धि प्राप्त करनेवाला साम्नाज्य पूर्णिमा के समुद्र समान लहरा रहा था और त्रिभवनमल्लका सद्गुणागार छोटा भाई, उसके हृदयको प्रफुल्ल करनेवाला, एवं परम प्रिय अनग-हृदयको जीतने वाला-अपने सदगुणों से विक्रमका स्नेह भाजन-काम समान और प्रेम पात्र था इससे अधिक और क्या गुण हो सकता है। जिसके [जयसिंहके] भुजबल प्रताप और शौर्य अग्नि से दग्ध दहल राज्य आज मी निर्भय नहीं हुआ है-लाटपति आज भी उसके शौर्यका स्मरण कर हिमालयके कन्दराओंका आश्रय लेनेके लिये गमनोन्मुख होता है। तेवलआश्रय प्राप्त करनेके लिये लंकासे मी दक्षिण पलायन करता है। कोंकणपति उसके क्रोधित होनेकी आशंका से चिंतित हो रहा है । वीरनोलम्बकीशक्ति कितनी बड़ी है, अहा! जिसके नाम श्रवण माणसे शत्रुओंका ह्रदय दहल जाता है। इस प्रकार आरति समुदायको चिन्तित करने वाला--समस्त संसारमेंस्तुति प्राप्तः और प्रख्यात-पल्लवान्वय-पृथिवी पति-युवराजा परमेश्वर वीर महेश्वर-विजयेन्द्र लक्ष्मी प्रिय-शरणागत वत्सल-चौलुक्य चूड़ामणि-युद्धमें त्रिनेत्र-क्षत्रियों में पवित्र-छात्र वंश उजागर -मंद मस्त कुन्जर-स्वभावतः कामदेव-शत्रु समूह कदली बन वीदारक-अपने बड़े भाईका परम प्रख्यात तथा प्रचण्ड दौर्दान्त अद्वितीय योद्धा-श्रीमान त्रयलोकमल्ल वीरनोलम्ब पल्लव परमनादि जयसिंह देव दुष्ट निग्रह और शिष्ट पालन पूर्वक-सुख और शान्ति के साथ दक्षिण समुद्र से लेकर पुलगिरि-रेवु-भाले केरुवालं-बनवासी-नाड और वेल वालप्रदेशोंकी “ युवराज वीरनोलम्ब जयसिंह देव" लक्ष्मीको दृढ़तासे अंकशायिनी बना शासन करता था । जयसिंहके पादपद्मका भ्रमर सद्गुणागार शत्रु नाशक दण्डाधिप अपने स्वामीके कार्यशाधक बलदेव था। जिसका पारलौकिक स्वामी जिनेन्द्रनाथ था। और लौकिक स्वामी पृथ्वीपति सीगीदेव अर्थात जयसिंह एवं गुरुन्नत पति मार्कन्डेय मुनी-माता शान्तियाक पत्नी मल्लिका और पुत्र लक्ष्म था। दण्ड नायक बलदेव के समान संसारमें कौन भाग्यशाली है। इस प्रकार महिमा प्राप्त-पञ्च महा शब्दका अधिकारी-महा सामन्ताधिपति-महा प्रचना-दण्ड नायक-सरस्वति कर्ण भूषण-त्रिलोकमल्ल वीर नोलम्ब पल्लव परमनादि जयसिंह
का चरण किंकर-स्वामी कार्य साधक महा सामन्त बलदेव वनवासी द्वादश सहस्र और अठारह अप्रहारोंका शासन करता था और उसके अधिकार में राज्यधानी वलिपुरका मार्ग शुल्क था। महासामन्त दण्ड नायक बलदेव-जब पानली काननमें निवास कर रहा था उससमय चौलुक्य विक्रम वर्ष के पुष्य, अमावास्या तिथिः उत्तरायण संक्रान्ति सूर्य ग्रहण के समय समस्त मंत्रियों के आग्रह से, तेवल्वे सहला के कम्पन्न सरवादि सप्तती अन्तपाती कठ अपहार का कर माफ किया ।
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