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चौलुक्य चंद्रिका ]
प्रयोग किया है । वात्सायनका समय विक्रमका तृतीय शतक मान जाता है । एवं टौलमी के प्रन्थोंमें भी लाटका रुपान्तर लारिक शब्द दृष्टिगोचर होता है ।
लाट शब्द की व्युत्पत्ति ।
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लाट नामकी व्युत्पत्ति संबंध में कितने पुरातत्वज्ञोंका विचार है कि लाट शब्दका रूपान्तर र" का "ल" होकर हुआ है। वास्तवमें देखा जाय तो र का रूपान्तर “ ल ” देखनेमें आता है | चाहे जो हो दक्षिण गुजरातका पूर्व नाम लाट था। और गुजरात नाम पड़नेके कई शताब्दी पूर्व से लेकर कई शताब्दीपर पर्यन्त व्यवहृत था । हमारा संबंध केवल लाट और गुजरात नामसे होनेके कारण हम और अधिक पुराकालीन नामादि के विवेचन में प्रवृत्त न होकर अन्य बातोंका विचार करते हैं ।
लाट का भूभाग और सीमः ।
दक्षिण गुजरात तथा लाटके अन्तर्गत मही नदीसे लेकर तापी नदीके उपत्यका पर्यन्त भूभागका समावेश निर्भ्रान्ति रुपसे पाया जाता है । परन्तु अन्यान्य एतिहासिक घटनाओं पर दृष्टिपात करनेसे प्रगट होता है कि दक्षिण गुजरात और लाटकी सीमाका विभाजन करनेवाली कावेरी नामक नदी है। अतएव हम कह सकते है कि कावेरी नदीसे लेकर मही नदीपर्यन्त प्रदेश दक्षिण गुजरात तथा लाट नामसे अभिहित होता था । पूर्व समय दक्षिण और उत्तर गुजरातको विभाजित करनेवाली मही नदी थी । एवं दक्षिण गुजरात और अपरान्त अथवा उत्तर कोकणको विलग करनेवाली कावेरी नदी थी। यदि देखा जाय तो आज भी लगभग दक्षिण गुजरात की सीमा पूर्वक्तही है क्योंकि पूर्व कथित दोनों नदियां अपनी पूर्व अवस्थामें ही दृष्टियोचर होती है। प्रतएव वर्तमानः दक्षिण गुजरातकी सीमा निम्न प्रकारसे है,,, उत्तरसें उत्तर, गुजरात, स्वभावः स्वेत, रोदाका पेटलाद, खेडा जिला, आदि
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जिला-पूर्व में सिन्ध और अर्बुद पर्वत ।
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श्रेणीके मध्यवर्ती खानदेश, मालवा और कुछ भाग बागड़ प्रदेशका और पश्चिम समुद्र
नामसे अभिहित होनेवाले समुद्रकी खम्भात नामक खाड़ी ।
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