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चौलुक्य चंद्रिका]
लुम्बर होसरू रामेश्वर प्रशस्ति
का
छायानुवाद। भगवान शिवको नमस्कार।
भगवान घनश्याम जिनके हाथों में सारंग नाम धनुष की रोदाका आघात होता है और जिनके चारो हाथ संसार रूपी मण्डपको आश्रय देनेवाले विशाल स्तम्भ है, कल्याण करे। भगवान गणपतिको नमस्कार । कल्याण हो । जब के सकल संसारके आश्रय भूत पृथिवो पति महाराजाधि राज परमेश्वर परम भट्टारक सत्याश्रय कुल तिलक चौलुक्य वंश भूषण श्रीमान त्रिभुवनमल्ल देव; का उत्तरोत्तर वृद्धि प्राप्त करने वाला साम्नाज्य पौर्णीमाके समुद्र समान लहरा रहा था।
और चौलुक्य युवराज पल्लव परमनादि वीर नोलम्ब श्री जयसिंह देव वनवासी द्वादश सहस्त्र, सन्तालिग सहस्त्र और षट सहस्त्र नामक दो प्रदेशों का शासन सुख और शान्तिके साथ करते थे।
उस समय सिध्धार्थी नामक संवत्सर तदनुसार चौलुक्य विक्रम वर्ष के ४ वर्ष माघ शुक्ल प्रदिपदा रविवारको उत्तरायण संक्रान्ति ब्यतिपात सूर्यग्रहण महा पबके समय यम नियम स्वध्याय ध्यान धारणा समाधि युक्त १००० ब्राह्मणो के अग्रहार के अधिपति यम नियम स्वध्याय धान धारणा समाधि शील सम्पन्न चतुर्वेद ज्ञाता सकल शास्त्र विशारद भारद्वाज गोत्री भटार पोशावारकों ननीमाया का पुत्र दिवाकरने होशावुर ग्राम में भूमि क्रय करके सत्र निमित्त दान दिया ।
__इस धर्मादाका कोई अपहरण न करे। अपहरण करनेवालो को पंच महापातक होगा। इस शासन को मुन्द्रावन पूगदे गोविन्द राजा का छोटाभाई लेखकोंका अनुचर और सरस्वति का कर्णभूषण कामराज ने लिखा।
शिल्पिोंका अप्रणी सरस्वति गणके पदपंकजका भ्रमर जनैन्द्रका अनन्य भक्त शिल्पकार पद्मजाने इस शासन को शिला खड पर उत्कीर्ण किया ।
यह धर्म शासन संसार में सूर्य चंद्र की स्थिति पर्यन्त कायम रहे।
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