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हुले गुण्डी प्रशस्ति
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छायानुवाद.
स्वस्ति । समस्त संसार के आश्रय पृथिवी पति महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक सत्याश्रय कुल तिलक चौलुक्य वंश विभूषण श्री भुवनमल्ल देव का राज्य लहरा रहा था। और सकल संसारमें स्तुति प्राप्त महा महिम पल्लवान्त्रय पृथिवी वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर वीर महेश्वर - विदग्ध विलासनीके नयन रूपी चकोर का चंद्रमा - साक्षात इन्द्र विक्रान्त कन्ठीरव - माण्डलीक भैरव शरणागत वत्र पंजर - चौलुक्य दिक् कुंजर - सहसालंकार कीर्ति वलरी परिवेष्ठित त्रिलोक्य राज्य विद्यांगना भूजंग - अनन निशिम, श्री त्रयलोक्यमल्ल नोलम्बा परमनादि जयसिंह देव का :
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[ लाट नन्दिपुर खण्ड
दुष्टशत्रु मानभंजक | मदान्ध गजसिंह साहस चूड़ामणि युध्धमे राक्षस समान प्राक्रमी, बडे बडे विशाल शत्रु रूपी हाथीओं का वशकर्ता अंकुश परम प्रचण्ड, भीमाकार दुरूप कदलीवनका विनाशक हाथी, बडे बडे योद्धाओं के ललाट पटका विदारक शत्रु रूप घृतका तापक अग्नि, शत्रु बल नाशक विराग्रगण्य, कवियोंकी कविता प्रबाह का निरोधक, केरेयुर निवासी महा सामन्त मंगीय एच्छायं सुलगाल प्रदेसका शासन करता था ।
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उस समय शक ९६५ प्रमादि संवत्सर के पुष्य बहुलाष्टमी तिथि सोमवार उत्तरायण संक्रान्ति के अवसर पर केरेयुर निवासीने यम नियम स्वध्याय ध्यान धारणा मौणानुष्ठान जप समाधि संपन्न ज्ञान शिव देव मुनीको सुरगाल तीर्थ के भीमेश्वर और हिडम्बेश्वर तथा अन्यान्य देवताओं के नित्त नैमित्तिक भोगराग पूजार्चन निवाहार्थ १०० मत्तल भूमिदान दिया ।
संसारमें जबतक सूर्य चंद्र और तारागणों की स्थिती है । भूमिदान देनेवाला रुद्रलोकमें सहस्रयुगपर्यन्त वास करता है ।
वेदार्थ वित्त ब्राह्मणों को सूर्य ग्रहण के अवसर पर जो समस्त संसारके दानका पुण्य प्राप्त होता है वही पूण्य परदत्त दानके संरक्षरण का होता है ।
भूदान का अपहरण करने वाला क्षुत्पीपासापिडीत प्रलय काल पर्यन्त घोर रौख में वास करता है ।
विष वास्तवमें विष नहीं वरण देवस्व विष है । क्यों कि विषतो केवल विषपान करने वाले कां प्राण हरता है परन्तु देवस्व पुत्र पौत्र आदि सब को नरक देने वाला है ।
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इस शासन का लिखने वाला महासन्धि विग्रहिक महा सामन्त मंगीय एच्छायन और उत्कीर्ण करने वाला बम्मायान है ।
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