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[ लाट वासुदेवपुर खण्ड
नेरल गुन्डी होनाली प्रशस्ति
का
विवेचन.
प्रस्तुत शिला प्रशस्ति मैसूर राज्य के सिमोगा जिला के होनाली तालुके नेरल गुन्डी ग्रामस्थ ईश्वर मन्दिर में लगी है । प्रशस्ति नेरल गुन्डी ग्राम के ओरया हितमाया के सूर्य ग्रहण के समय मल्लिकार्जुन नाम मन्दिर को दिये हुए दान का वर्णन करती है प्रशस्ति की तिथि जयनामक संवत्सर शक ६८६ है । प्रशस्ति लिखे जाने के समय चौलुक्य नरेश त्रैलोक्यमल्ल का शासन काल था । और प्रशस्ति वाला ग्राम नरेल गुन्डी त्रैलोक्यमल्ल के द्वितीय पुत्र जयसिंह वीरलोलम्ब पल्लव परमानदि के शासनाधीन प्रदेश के अन्तर्गत था । जयसिंह के शासनाधीन प्रशस्ति के अनुसार ददिर वलीगसहस्त्र बलकुण्डा त्र्यशत और कुण्डीयार प्रदेश थे । प्रशस्ति से वह प्रकट नहीं होता है कि कथित तीनो प्रदेशो में से नेरलगुण्डी ग्राम किस प्रदेश में था ।
पुनश्च प्रशस्ति के पर्यालोचन से प्रकट होता है कि जयसिंह के प्रतिनिधि रूपमें उसका महामंत्रि उसके शासनाधीन प्रदेशोंका शासन करता था । उक्त मंत्रि को शासन संबंधी पूर्ण अधिकार प्राप्त था क्योंकि प्रशस्ति वाक्य समस्त राज्यभार निरुपित्” शासन संबंधी पूर्ण अधिकार प्राप्ति का भाव प्रकट करता है ।
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अराकिरी पूर्वोधृत प्रशस्ति वाली प्रशस्ति से हमे प्रकट है कि जयसिंह को कोगली पंचशत तथा अन्यन्य प्रदेशों की जागीर शक ६६६ में मिली थी । परन्तु उक्त प्रशस्ति के कुछ अंश नष्ट हो जाने से अन्य प्रदेशोंका नाम ज्ञात नहीं हो सकता था । वर्तमान प्रशस्तिमें ददिर वलीग, वलकुण्डा और कुण्यार प्रभृति तीन प्रदेशोंका नाम स्पष्ट तया उल्लिखित है परन्तु कोगली पंचशत का पूर्णतया अभाव है, यद्यपि कोगली पंचशतका इसमें उल्लेख नहीं है तथापि इसका समावेश इत्यादि में हो जाता है और जयसिंहके शासनाधीन प्रदेशों में चारका नाम स्पष्ट मालुम हो जाता है।
प्रशस्ति में जयसिंहके अन्यान्य विरुदों और विशेषणों के साथ एक वाक्य विरुद दृष्टिगोचर होता है। एक वाक्यपद पूर्व प्रशस्तिका अमोघ वाक्यका पर्यायवाचक वाक्य हैं। इससे प्रकट होता है कि जयसिंह बाल्यकाल से ही अपने वाक्य का धनी अथवा अपने वचनको पूरा करने वाला था । वह सामान्य राजा और राजकुमारों के समान अपने वचनको गौरव और महत्व शून्य उपेक्षनीय नहीं मानताथा वरण जो कुछ कहता था उसे अपने लिये प्रतिबंधरुप मान उसे पुरा करता था । कितने महानुभावों के विचारसे जयसिंह समान के लिये “एक वाक्य और अमोघ वाक्यं" पदक
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