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चौलुक्य वंशिका -1
लाटपति श्री त्रिलोचनपाल
शासन पत्र ।
का.
छायानुवाद। भगवान विनायक को नमस्कार । कल्याण-जय और अभ्युदय हो ।
भगवान देवाधि देव महादेव जिन के हाथों में- बाण, विणा, पद्य त्रिशूल खट्वान वरदान और भयकी प्रचूर शक्ति है-अन्यथा वे किस प्रकार दानवो से संसारकी रक्षा कर सकते है रक्षा करे ॥१॥
भगवान हरि जिनके हाथों में शंख चक्र गदा और पद्म और गलेमें कौस्तुभ मणीकी माला है और जो समस्त संसार के मानस पर निवास करते हैं उक्त त्रिदशाधिप रक्षा करें २ ॥
भगवान चतुरानन ब्रह्मा जिनके हाथों में कमण्डलु दण्ड और श्रुवा है जो अपनी जप मालिकाकी दानाओ के संचार क्रमसे मंत्रो का उच्चारण तथा स्वयं अज होते हुए भी संसारकी हित कामनासे मानवी सृष्ठिकी रचना करते हैं-रक्षा करें ३ ॥
किसी समय ब्रह्मा के संध्या करते समय सूर्याध प्रदान करने के लिये हाथके चुलुक में लिये हुए जल के दैत्यो के उपद्रव जन्य खेदात्मक रुप मन्दर के मन्थन से राज रत्नरूप पुरुष उत्पन्न हुआ ४॥
इस प्रकार भगवान ब्रह्मदेव के चुलुक से पैदा हुआ महा पुरुष ने हाथ जोड नमस्कार कर पूछा कि है देव मुझे क्या करनेकी आज्ञा होती है । इसपर ब्रह्माने अपने समादिष्ठार्थ अथात दैत्यो के उपद्रव समन को लक्ष कर आल्हादित हो आदेश दिया ५॥
हे चौलुक्य तुम सुखकी इच्छासे कान्यकुब्ज के राष्ट्रकूट वंशी महाराज की कन्या को प्राप्त करो और उससे यथेष्ट संतान तंतुका प्रसार करो। जिस प्रकार पर्वतसे निकली हुई नदिओं से पृथिवी परिपूर्ण है उसी प्रकार तुमसे उत्पन्न चौलुक्य बंशका संसार में विस्तार होगा ॥ ६॥७॥
उक्त चौलुङ्गय वंशमे अतुल कीर्ति, परस्त्रिों के संस्पर्ष भय से मीत बारपराज नामक राजा हुआ। जिसने संसार के शोक को दूर किया। ॥८॥
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