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[लाट नवसारिका खण्ड प्रदत्त ग्राम पर्याय का अवस्थान निश्चित होते ही जंबुसरको हम शासन पत्र कथित जंबुसर घोषित करते हैं। और पाश्चात्य विद्वानों की धारणा कि यह शासन पत्र बनावटी है को भ्रान्त और आधार शून्य प्रकट करते हैं।
शासन पत्र कथित जंबुसर आदि ग्रामों के स्थानादिका विवेचन करने पश्चात इसकी तिथि का विचार करना आवश्यक प्रातीत होता है। इसकी तिथि संवत ३६४ है। हमारे पाठकों को ज्ञात है कि जयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र युवराज शिलादित्य के संवत ४२१ और ४४३ के दो लेख द्वितीय पुत्र मंगलराजका शक ६५३ का एक लेख और तृतीय पुत्र पुलकेशी के शक ४६० के लेखका हमें परिचय है । कथित लेखों का संवत विक्रम ७२७,७४६, ७८८, और ७६६ है। अतः प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रस्तुत शासन पवका संवत ३९४ कौनसा संवत है। यह अज्ञात संवत्सर नहीं हो सकता क्यों कि पुलकेशी के लेख के विवेचन में हम दिखा चुके हैं कि उक्त अज्ञात संवत्सर और विक्रम संवत्सर का अन्तर ३०६ वर्ष का है। संभव है यह गुप्त संवत्सर हो । गुप्त संवत मानने से इसे विक्रम बनाने के लिये विक्रम और गुप्त संवत का अन्तर ८८ वर्ष इसमें जोड़ना होगा। ३९४+ ८८४८२ प्राप्त होता है। अतः यह गुप्त संवत्सर नहीं। कदाचित यह शक संवत हो। शक मानने से इसमें शक और विक्रम के अन्तर १३५ को जोड़ना होगा । अतः ३६४=१३५-५२६ उपलब्ध होता है। अतः यह शक संवत भी नहीं है । अब केवल शेषभूत वल्लभी संवत रह गया है। यदि वल्लभी संवत मानने से भी इस संवत का क्रम नहीं मिला तो हमें हार मानकर इस शासन पत्र को जाली मानना पड़ेगा। वल्लमी और विक्रम संवत का अन्तर ३७५ वर्षका है। अतः प्रस्तुत संवत ३६४-३७५ -७६९ विक्रम होता है। इस संवत का जयसिंह के तिथि क्रमसे क्रमभी मिल जाता है। परन्तु तिथि क्रमके मिलने बाद भी एक दूसरी विपत्ति सामने आकर खड़ी होजाती है। वह विपत्ति यह है कि प्राप्त विक्रम संवत ७६६ जयसिंह के द्वितीय पुत्र मंगलराज के राज्य काल में पड़ता है। क्यों कि उसका समय विक्रम ७४६ से ७८६ के मध्य है।
इसका समाधान यह है कि जयसिंह ने अपने चौथे पुत्र बुद्धवर्मा को जागीर दिया होगा। और उसका पुत्र उसकी मृत्यु पश्चात अपने पिताकी जागीरका उत्तराधि
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