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चौलुक्य चंद्रिका] शासन पत्र ४२१ वाले लेखमें और दूसरे पुत्र पुलकेशी के संवत ४६० वाले लेख में इसका उल्लेख पाया जाता है। एवं तापी के वाम तटवर्ती भूभाग पर उसके अधिकार का स्पष्ट चिन्ह कथित लेखों से पाया जाता है। इन दोनों लेखों में कार्मण्येय का उल्लेख है। कार्मण्येय वर्तमान कमरेज है। और तापी के वाम तट पर अवस्थित है। इस नगरकी प्राचीनता निर्विवाद है। क्यों कि इसके दुर्गावशेष से अनेक पुरातात्विक पदार्थ पाये जाते हैं। कमरेज सूरतसे लगभग १५ मीलकी दूरी पर वायव्य कोण में है।
कमरेज प्रामसे लगभग २०-२५ मील उत्तर पूर्व में राजपीपला के अन्तर्गत जम्बु नामक एक पुरातन ग्राम है। वर्तमान समय इस गाँवमें केवल १०-१५ झोपड़िय पाई जाती हैं। परन्तु गाँवके चारो तरफ लगभग दोमील पर्यन्त अनेक मन्दिरों और मकानों के अवशेष पाये जाते हैं। अब यदि हम इस जम्बु गांव को शासन पत्र कथित जंबुसर मान लेवें तो वैसी दशा में शासन पत्र संबंधी अनेक आशंकाओं का समाधान हो जाता है। प्रथम शंका जो चौलुक्यों के जंबुसर खेड़ा और प्रान्तिज के समीप वाले बीजापुर पर्यन्त अधिकार संबंधी है-का किसी अंश में निराकरण हो जाता है। क्यों कि कमरेज से और अधिक आगे २० मील पर्यन्त उनके अधिकार का होना असंभव नहीं है। अब यदि हम जंबुग्राम और कमरेज के पास पर्याय और बीजापुर नामक ग्रामों का परिचय पा जाये तो सारी उल्झी हुई गुथ्थी अपने आप सुलझ जाय । कमरेज से ठीक सामने तापी नदी के दक्षिण तट पर कठोर नामक ग्राम है। कठोर से सायण नामक ग्राम लगभग ४ मील की दूरी पर है। सायण बी. बी. सी. आई, रेल्वे का एक स्टेशन है। सायण से पश्चिम देढ़ दो मील की दूरी पर परिया ग्राम है। हमारी समझमें शासन पत्र कथित पर्याय ग्राम वर्तमान परिया है । क्यों कि पर्याय का परिया बनना अत्यंत सुलभ है। इस परिवर्तनको निश्चित करने के लिये परिवर्तन नीति को भी काममें लानेकी आवश्यकता नहीं है। क्यों कि पर्याय के अन्तरभावी यकार का परित्याग होकर परिया बना है। इस प्रदेशमें जयसिंह तथा उसके पुत्रों के अधिकारका होना अकाट्य सत्य है । अतः हम निःशंक होकर वर्तमान परिया को शासन पत्र कथित पर्याय मानते हैं । परन्तु दुर्भाग्य से शासन पत्र कथित विजयपुर का परिचय प्राप्त करनेमें हम असमर्थ हैं।
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