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[८ डी पर पहुँचाया था। क्योंकि वह भारत का एक छा चक्रवर्ती साम्राट था । एवं उसने अन्य देशोंके साथ राज नैतिक संबंध स्थापित कर राजदूतोंका परिवर्तन किया था। उसकी राज सभामें पारसी राजदूत रहता था। एवम् प्रसिद्ध चीनी यात्री हुआंगतसांग भारत भ्रमण करता हुआ उसकी राज सभामें आया था। इन दोनों विदेशियों का नाम भारतीय इतिहासमें सदा अमर रहेगा। क्योंकि दोनों का चिह्न आज भी उपलब्ध है।
____पारसी र.जदूत, भारत सम्राट चौलुवय चंद्र पुलकेशीकी सेवामें, पारसी नरेश की भेजी हुई भेंट की वस्तुएं. उपस्थित करते समय, का चित्र ऐजन्त गिरि (अजन्टा ) की गुफामें चित्रित किया गया है, एवम् हुआंगतसांगने अपनी आंखों देखे चौलुक्य वंशके वैभवका, मनुष्यों के सदाचार प्रभृति तथा धार्मिक भावनाओं, रहनसहन, और युद्ध नीति इत्यादिका वर्णन अपने यात्रा विवरणमें बड़ीही ओजस्विनी भाषामें उत्तमता के साथ किया है।
पुनश्च ताम्र पत्र के मनन से प्रगट होता है कि पुलकेशी द्वितीय के पश्चात चौलुक्य वंशका सौभाग्य मंद पड़ा । क्यों कि पल्लवों ने इनकी बहुतसी भूमि दबाली थी। परन्तु जब विक्रमादित्य गद्दीपर आया तो उसने पल्लवों को अच्छा पाठ पढ़ाया। पल्लवों को पाठ पढ़ाने वाला धराश्रय जयसिंह वर्मा था। जिससे संतुष्ट हो कर विक्रमादित्य ने साम्राज्य के उत्तरीय भाग गोप मंडल, उत्तर कोकण, और लाटादि का राज्य प्रदान किया था । पल्लव विजय का विवेचन हम चौलुक्य चंद्रिका वातापि खण्ड में विक्रम के लेखों में कर चुके हैं।
प्रस्तुत ताम्र पात्र के शासन कर्ता युवराज शिलादित्य के लिये इसमें "शरद कमल सकल शश धर मरीचि माला वितान विशुद्धकीर्ति पताका" वाक्य का प्रयोग किया गया है। परन्तु हमारी सम शिलादित्यमें इस विशेषणका यथार्थ अधिकारी नहीं था। क्यों कि प्रथम तो वह स्वयं राजा नहीं था यदि कुछ था तो केवल युवराज । द्वितीय वह स्वतंत्र राजाका नहीं वरन माण्डलीक राजा का पुत्र था। तीसरे हम ऊपर प्रगट कर चुके हैं कि प्रस्तुत लेख लिखे जाते समय वह अल्प वयस्क बालक था।
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