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चौलुक्य चंद्रिका ]
युवराज शिलादित्यके दान पत्र
का
विवेचन। प्रस्तुत ताम्रपत्र युवराज शिलादित्य का शासन पत्र है । ८. १ । २ लम्बा और ४. ३।४ चौड़े आकार के ताम्रपट पर उत्कीर्ण है। ताम्रपटों की संख्या दो है । प्रथम ताम्रपट में पंक्ति
ओं की संख्या १० और दूसरे में ११ है । दोनों पटों के मध्य छिद्र हैं उसमें एक अंगूठी लगी है। अंगूठी के ऊपर राजा की मुद्रा है । उसमें श्री आश्रय अंकित है । ताम्र लेख पुरातन चौलुक्य शैली का है, लेखकी भाषा संस्कृत है। लेख पर दृष्टिपात करने से दानदाता की वंशावली निम्न प्रकारसे उपलब्ध होती है।
पुलकेशी वल्लभ
सत्याश्रय (विक्रमादित्य)
धराश्रय (जयसिंह वर्मा) श्री श्रिय शिलादित्य युवराज
वातापिके चौलुक्य वंशकी बंशावलीसे हमें प्रकट होता है कि सत्याश्रय-विक्रमा दित्य-पुलकेशी द्वितीयका पुत्र था । इस ताम्रपत्रमेभी उक्त बातें पाई जाती हैं अतएव इस ताम्रपत्र कथित पुलकेशी वल्लभ और पुलकेशी द्वियीय अभिन्न व्यक्ति हैं । इस लेखमें सत्याश्रय विक्रमादित्यको “ माता पितृ श्री नागवर्धन पादानुध्यात” कथित किया गया है ताम्रपत्रोंमें “पादानुध्यात” पद स्वर्गीय राजाके उत्तराधिकारीको ज्ञापन करता है । चाहे वह पूर्व राजाका भाई-भतीजा-चचा अथवा पुत्र प्रभृति कोई भी क्यों न हो। अत एव सम्भव है कि विक्रमादित्यको अपने पितासे राज्य न मिला हो । उसके और उसके पिताके मध्य नागवर्धन ने राज्य किया हो इसीको ज्ञापन करनेके लिये यहांपर “माता पिता और श्री नागवर्धन पादानुध्यात” पदका प्रयोग किया गया है । सम्भव है नागवर्धन पुलकेशीका चचेरा भाई हो ।
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