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ताकत हो तो मुंबईकी पोलीस चौकी कोटवाली में शास्त्रार्थ कर नेको आवो, दूरसे कागज काले करके मनमानी आडी२ लंबी चौडी झूठी झूठी बातें लिखकर भोलेजीवको भरमानेका काम नहीं करना.
३- दोनों को सब लेख सिद्ध करके बतलाने पड़ेंगे. उसमें झूठेको क्या आलोयणा लेनी, सो लिखो. वैशाख शुदी १३. "
न्यायरत्नजी आपकी धर्मवाद करने की ताकातहोती तो इतने दिन मानकरके क्यों बैठे, खैर ! ! ! जैसी आपकी इच्छा. मगर याद रखना सभामे योग्य नियमानुसार शास्त्रार्थ न करना, और अपने झूठे पक्षकी बात रखने के लिये वितंडावाद करना या सामने न आकर सा. क्षि व प्रतिज्ञा बिनाही दूरसे कागज काले करते रहना और विषयांतर व कुयुक्तियों से उत्सूत्रप्ररूपणाकी आपकी दोनों कीताबें सी बनाना चाहो सो कभी नहीं हो सकेगा, किंतु इसके विपाक भवांतर में अवश्य ही भोगने पडेगे. मरीचि ओर जमालिसे भी आपका उत्सूत्र बहुत ज्यादे है, आत्महित चाहते हो तो हृदयगम करके प्रायश्चित्त लेवो, उससे श्रेय हो. तथास्तु. सं० १९७५ ज्येष्ठ शुदी २ सोमवार. हस्ताक्षर मुनि मणिसागर.
इसप्रकार उपरमुजब लेख प्रकट होने से न्यायरत्नजी 'झूठे हैं इस. लिये खुप लगाकर बैठे हैं' इत्यादि बहुत चर्चा होने लगी तब अपनी झूठी इज्जत रखनेकेलिये १ हैंडबलि छपवाया उसमें लिखाया कि, • सभा हुईनहीं शास्त्रार्थ हुआनहीं फिर हारजीत कैसे होसके ' इसके जवाब में हमनेभी विज्ञापन १०वा छपवाकर उनके लेखका अच्छीतर. इसे खुलासा कियाथा वो लेखभी नीचे मुजब है:
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विज्ञापन, नंबर १०.
श्री तपगच्छके न्यायरत्नजी शांतिविजयजीके हारका कारण, और उनकी अधिकमास से शास्त्रार्थकी जाहिर सूचनाका उत्तर.
१-न्यायरश्नजी लिखते हैं कि, 'सभा हुईनहीं शास्त्रार्थहुवानहीं फिर हारजीत कैसे होसके' जवाब आपकी हारका कारण विज्ञापन ७वें में और ९ में लिख चुका हूं. उसको पूरेपूरा लिखकर सबका उत्तर क्यों न दिया ? फिरभी देखिये- मैरे विज्ञापन नं. ७ के सब लेखोंका पूरेपूरा उत्तर नियत समयपर आप देखकेनहीं १, विज्ञापन ६ मुजब सभा के नियमभी मंजूर किये नहीं २, आजकल वारंवार मुंबई में आ
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