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श्रीवीतरागाय नमः |
दूसरे भागकी पीठिका
इनको भी पहिले अवश्यही वांचिये.
अब हम यहां पर दूसरे भागकी पीठिकामै न्यायरत्नजी शांतिविजयजी संबंधी थोडासा लिखते हैं, जिसमें ३ वर्ष पहिले दो भाद्रपद होने से पर्युषण पर्व प्रथम भाद्रपद में करने या दूसरे भाद्रपदमै, इस विषयकी मुंबई शहर में चर्चा खूब जोरशोर से दोनोतरफसे चली थी. उस समय मैने भी 'लघुपर्युषणा निर्णयका प्रथमअंक' नामा छोटासी पुस्तकमें मुख्य २ सर्व बातें की शंकाओं का समाधान अच्छीतरह से - लिख दिया था. वह पुस्तक एक श्रावकनेछपवाकर प्रसिद्ध करीथी. उस पर न्यायरत्न जीने उनपुस्तककी शास्त्रानुसार सत्य२ बातोंकों ग्रहण तो नहींकरी और मैरे सबलखाको अनुक्रमसे पूरेपूरे लिखकर पीछेउनसबका जबाब देने की भी ताकत न होनेसे जानबूझकर कुयुक्तियों से अनेक बातें शास्त्रविरुद्ध लिख कर 'पर्युषण पर्वनिर्णय' तथा 'अधिकमास निर्णय' में प्रकटकरीथी. उसपर मैने उन दोनों पुस्तको की शास्त्रविरुद्ध बातीसंबंधी शास्त्रार्थसे सभा में निर्णय करनेकेलिये न्यायरत्नजीको जाहिररूपसे छपवाकर सूचना दीथी. उसका लेख नीचे मुजब है. विज्ञापन, नं० ७
न्यायरत्नजी शांतिविजयजी सावधान ! शास्त्रार्थके लिये जलदी तैयार हो.
मैंने आपको शहर पुणामें शास्त्रार्थ संबंधी विज्ञापन नंबर १-२-३-४ भेजे थे और वर्तमानिक पर्युषणाकी चर्चासंबंधी आपकीबनाई ' पर्युषण पर्वनिर्णय ' किताब " शास्त्रकारोंके अभिप्रायविरुद्ध, जिन आशा बाहिर और कुयुक्तियोंसे भोले जीवोंको उन्मार्गमें गेरनेवाली है, " यह सूचना विज्ञापन नंबर पहिलेमें लिखकर इसका वि शेष खुलासा मुंबईकी सभा में शास्त्रार्थ द्वारा करनेके लिये आपको आमंत्रण किया था और श्रीकच्छी जैन मेसोसीयन सभानेभी सब मु. निमहाराजों की तरह आपको भी पर्युषणाका निर्णय करने संबंधी वि. मतीपत्र भेजाथा, जिसपर भी आपने मुंबई में शास्त्रार्थकरना मंजूर न
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