________________
[४६] महीनेके ३० दिन देवपूजा मुनिदानादि कार्यो में गिनतीमें आते हैं, तैसेही पर्युषणामी अधिक महीनेके ३० दिन गिनतीमें आते हैं, जिसपरभी पर्युषणामे अधिक महीनके ३० दिन नहीं मिननेका लिखा सोभी यह तेरहवी भूलकीहै ।
१४- अधिक महीनेके ३० दिनोंमें वनस्पति बढती है। व फूल. फलादि भी होते हैं, जिसपरभी आवश्यक नियुक्तिकी गाथाका भावार्थ समझे बिनाही अधिक महीनेमें वनस्पति पुष्पवाली नहीं होनेका लिखा सोभी यह चौदहवी भूलकी है।
इत्यादि अनेक तरहसे शास्त्रविरुद्ध होकर अधिक महीनेके ३० दिनोंको गिनतीमें लेनेका निषद्ध करनेकेलिये उत्सूत्रप्ररूपणारूप ब. हुत भूलेकी हैं उन्होंको खास सुधारनेकी आवश्यकता है। अब श्रीमहावीरस्वामिके आगमोक्त छ कल्याणकोंका निषेध करने संबंधी भलाका थोडासा
खुलासा लिखते हैं। १५- तीर्थंकर महराजाके च्यवन-जन्मादिकोंको कल्याणकपना आगमानुसार अनादि सिद्ध है, इसलिये उन्होंको च्यवनादि वस्तु कहो, चाहे च्यवनादि स्थान कहो, या च्यवनादि कल्याणक कहो यद्यपि वस्तु व स्थान शब्द अनेकार्थवालेहैं तोभी तीर्थकरमहाराजके चरित्र में प्रसंगसे च्यवन जन्मादिकम सब एकार्थवाले पर्यायसूचक शब्द अलग २ हैं, मगर सबका भावार्थ एकहीहै, किंतु भिन्न २ नहीं है। इसलिये श्रीपार्श्वनाथस्वामिके तथा श्री नेमिनाथ स्वामिके च्य. वनादि पांच पांच कल्याणकोकी तरहही श्री महावीर स्वामिकेभी च्यवनादि पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमें और छठा निर्वा ण कल्याणक स्वातिनक्षत्र में होनेका कल्पसूत्रादि आगमोंमें खुलासा पूर्वककहाहै । जिसका मर्म समझे बिना कल्पसूत्रकेमूल पाठके अर्थमें च्यवनादि छकल्याणकोका निषेध करनेकेलिये छ वस्तु या स्थान कहकर अनादिसिद्धकल्याणक अर्थको उडादिया यह सूत्रार्थके उत्था पन करनेवाली उत्सूत्रप्ररूपणारूप सबसे बडी पंदरहवी भूलकी है।
१६- श्रीमहावीर स्वामिके प्रथम व्यवन कल्याणकके दिनमें तो आषाढ सुदी ६ को इन्द्र महाराजका आसन चलायमानभी नहीं
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com