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________________ [ ४०२ ] धार आंख वालेकी तरह हो जाना चाहिये तैसेही यह शेठ पुरुष है परन्तु पर मत्री के गमनका और वेश्याके गमनका वर्जन करनेवाला धर्मावलम्बी होनेसे उनके साथ मैथुन सेवन करनेमें तो नपुंसककी तरह हैं परन्तु अपने नियमका प्रतिपालन करके ब्रह्मचर्य धारण करने में तो समर्थ होनेसे उत्तम पुरुषकी तरह है अर्थात् आपही उस गुणसे उत्तम पुरुष हैं इसी न्यायानुसार यद्यपि अधिक मास भी गिनतीके प्रमाणका व्यवहारमें तो बारह मासों के बरोबरही पुरुष रूप है उसीमें वैष्णव लोग दान पुण्यादि विशेष करते हैं और उसीके महात्म्यकी कथा सुनते हैं इसीलिये उसीको पुरुषोत्तम अधिक मास कहते हैं । और श्रीजैन शास्त्रों में भी मन्दिरके शिखरवत् कालका प्रमाणके शिखर रूप उत्तम ओपमा अधिक मासको है। उसीमें मुहूर्त नैमित्तिक विवाहादि भारम्भ वाले संसा. . रिक कार्य नहीं होते हैं परन्तु धर्म कार्य तो विशेष होते हैं इसलिये उपरोक्त न्यायानुसार मुहूर्त नैमित्तिक आरम्भ वाले संसारिक कार्यों में तो अधिक मास मपुंसककी तरह है परन्तु धर्म कार्यों में तो विशेष उत्तम होनेसे सबसे अधिक है इसलिये इसका अधिक मास ऐसा नाम भी सार्थक है तथापि धर्म कार्यों में और गिनतीका प्रमाण में उसीको नपुंसक ठहरा करके अधिक मासकी निन्दा करते हुए उसीकी गिनती निषेध करते हैं तो वह व्यभिचारिणी स्त्रीका और वेश्याका अनुकरण करनेवाले हैं सा पाठकवर्ग विचार लेवेंगे और अब सातवें महाशयजीके आगेका लेखकी समीक्षा करके पाठक वर्गको दिखाता हूंपर्युषणा विधारके छ8 पष्टको १० वीं पंक्तिसे सातवें पृष्टकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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