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आता है और उसकी निवृत्ति भी होती है इसलिये अधिक मासमें क्षुधा लगती है और उमीकी निवृत्ति भी होती है । और पाप बन्धनमें भी मन, वचन, कायाके योग कारण है उसीसे पाप बन्धन रूप कार्य्य होता है और मन, बचन, कायाके, योग समय समय में शुभ वा अशुभ होते रहते हैं जिससे समय समय में पुण्य का अथवा पाप का बन्धन भी होता है और समय समय करकेही आवलिका, मुहूर्त, दिन, पक्ष, माम, संवत्सर, युगादिसें यावत् अनन्ते काल व्यतीत होगये हैं तथा आगे भी होवेंगे इसलिये अधिक मासमें पुण्य पापादि कार्य्य भी होते हैं और उसीकी निवृत्ति भी होती है और समयादि कालका व्यतीत होना अढ़ाई द्वीपमें तथा अढ़ाई द्वीप के बाहर में और ऊद्ध लोकमें, अधोलोक में सर्व जगह में है इसलिये यहां के अधिक मासका कालमें वहां भी समयादिसें काल व्यतीत होता है इसीही कारण यहाँके अधिक मासका काल में यहांके रहने वाले जीवोंकी तरहही वहांके रहनेवाले जीवों को वहां भी क्षुधा लगती है और पुण्य पापादिका बन्धन होता है और यद्यपि वहां पक्षमासादिके वर्तावका व्यवहार नहीं है परन्तु यहां भी और वहां भी अधिक मासके प्रमाणका समय व्यतीत होना सर्वत्र जगह एक समान है इसीही लिये चारोंही गतिके जीवोंका आयुष्यादि काल प्रमाण यहांके संवत्सर युगादिके प्रमाणसें गिना जाता है जिससे अधिकमासके गिनतीका. प्रमाण संवत्सर, युग, पूर्वाङ्ग, पूर्व, पल्योपन, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, वगैरह सबी कालमें साथ गिना जाता है तथापि सातवें महाशयजी अधिक मासके.
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