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मिथ्यात्व सेवन करनेवाले हैं सो आगे
अभिनिवेशिक लिखने में आवेगा ;
और पर्युषणा विचारके प्रथम पृष्ठको १९ वीं पंक्तिसें दूसरे पृष्ठकी पंक्ति दूसरी तक लिखा है कि ( सिद्धान्तका रहस्य ज्ञात होने पर भी एकांशको आगे करके असत्य पक्षका स्थापन और सत्य पक्षका निरादर करनेके लिये कटिबद्ध होकर प्रयत्न करते दिखाई पड़ते हैं ) इस लेख पर भी मेरेको इतनाही कहना है कि सातवें महाशयजीनें अपने कृत्य मुजबही जैसा अपना ही उपरके लेखमें लिख दिखया है इसका खुलासा मेरा आगेका लेख पढ़नेसें पाठकवर्ग स्वयं विचार कर लेवेंगे
वर्ताव था वैसा
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और पर्युषणा विचारके दूसरे पृष्ठ को पंक्ति इसे ६ तक लिखा कि ( तत्र वार्षिकंपर्व भाद्रपदसितपञ्चम्यां कालि कसूरेरनन्तरं चतुर्थ्यामेवेति- अर्थात् भाद्रपद खुदी पञ्चमीका साम्वत्सरिक पर्व था पर युगप्रधान कालिकाचार्य्यके समय से चतुर्थी में वह पर्व होता है) इस लेख पर भी मेरेको इतना ही कहना है कि सातवें महाशयजीनें उपर के लेखसें वर्त्तमान कालमें दो श्रावण होते भी भाद्रपद में पर्युषणा स्थापन करनेके लिये परिश्रम किया सो भी उत्सूत्र भाषण है क्योंकि आषाढ़ चौमासीसे पचास दिने पर्युषणा करनेकी श्रीजेमशास्त्रों में मर्यादा पूर्वक अनेक जगह व्याख्या है इसलिये दो श्रावण होनेसें ५० दिने दूसरे श्रावणमें पर्यु - षणा करना शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक है तथापि मासवृद्धि दो श्रावण होते भी भाद्रपद में पर्युषणा स्थापन करते हैं सो मिथ्या हठवादसैं उत्सूत्र भाषण करते हैं क्योंकि
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