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________________ [ ३४३ ] तो पर्युषणाविचारके लेखकी मेरी लिखी हुई सब समी. क्षाको पढ़नेवाले सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे ;___और आगे फिरभी सातवें महाशपजीने पर्युषणा विचारके प्रथम पृष्ठकी पंक्ति १५वीं से पंक्ति८ वीं तक लिखा है कि (क्षयोपशमिक मतिज्ञानवान् और श्रुतज्ञानवान् पुरुष वे युक्ति प्रयुक्ति द्वारा अपने अपने मन्तव्यके स्थापन करने के लिये अभिनिवेशिक मिथ्यात्व सेवन करते हुए मालूम पड़ते हैं ) सातवें महाशयगीका यह लिखना उपयोगशून्य ताके कारणसे है क्योंकि क्षयोपशमिक मतिज्ञानवान् और श्रुतज्ञानवान् पुरुष वे युक्तिप्रयुक्ति द्वारा अपने अपने मन्तव्य को स्थापन करनेके लिये अभिनिवेशिक मिथ्यात्व सेवन करनेवाले सातवें महाशयजी ठहराते है तो क्या वर्तमान कालमें साधु और श्रावक श्रीजिनाज्ञाकी सत्यबातरूपी अपना मन्तव्य स्थापन करनेके लिये और श्रीजैनशासनके निन्दक ढूंढिये और तेरहा पन्थी लोगोंकों तथा अन्यमति. योंको भी समझानेके लिये युक्ति प्रयुक्ति करनेवाले सबीही अभिनिवेशिक मिथ्यात्व सेवन करनेवाले ठहर जायेंगे सो कदापि नहीं इसलिये सातवें महाशयजीका ऊपरका लिखना उत्सूत्र भाषणरूप भूलका भरा हुवा है क्योंकि जो जो कल्पित बातोंको स्थापन करनेके लिये जानते हुवे भी कुयुक्तियों करके बालजीवोंको मिथ्यात्वमें गेरेंगे सो अभि. निवेशिक मिथ्यात्व सेवन करनेवाले ठहरेंगे किन्तु सब नही ठहर सकते हैं परन्तु यह बात तो सत्य है कि 'जैसा खावे अब-तैसा होवे मन' इस कहावतानुसार अपने पक्षकी कल्पित बातें जमानेके लिये खास आप अनेक बातों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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