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[ ६५ ] है और उत्सूत्र भाषणके फलविपाक सम्बन्धी उपरमें ही पृष्ट २४ से २५६ तक लिखने में आया है उसीका भय लगता हो, तथा श्रीजिनेश्वर भगवान् के वचन पर आपलोगोंकी कुछ भी श्रद्धा हो, और अपनेही श्रीतपगच्छके नायक श्रीदेवेन्द्र सूरिजी तथा श्रीरत्नशेखर सूरिजीके उत्सूत्र भाषक सम्बन्धी उपरोक्त वाक्योंको आपलोग सत्यमानतेहो, और श्रीदेवेन्द्र सूरीजी कृत श्रीधर्मरत्नप्रकरण पत्ति आपलोगोंके समुदाय में विशेष करके व्याख्यानाधिकार तथा पठन पाठनमें भी वारंवार आती है उन्हीके वाक्पार्थकी आपके हृदयने धारणा हो, तो ऊपरका लेखको परमहितशिक्षारूप समझके सत्सत्र भाषण करते हो जिसको छोड़ो, तथा उत्सूत्र भाषण करा होवे उसीका मिथ्या दुष्कृत देवो, और गच्छके पक्षपात को तथा पण्डिताभिमानको छोड़के श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञा मुजब शास्त्रों के महत् प्रमाणानुसार आषाढ़ चौमासी से ५० दिने दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करनेका और अधिक मासको गिनतीमें प्रमाणादि अनेक सत्य बातोंकों ग्रहण करो, और भक्तजनोंकों करावो जिससे आपकी और आपके भक्तजनोंकी आत्मसिद्धिका रस्तापावा-श्रीजिनाजारूपी सम्यक्त्वरत्नके सिवाय मोक्ष. साधनमें गच्छका पक्षपात तथा पण्डिताभिमान कुछ भी काम नही आता है इसलिये गच्छ पक्षको छोड़के श्रीजिनाजा मुजब सत्यबातको ग्रहण करना सही आत्मार्थी विवेकी विद्वान् सज्जन पुरुषोंको परम उचित है। __और आगे फिर भी छठे महाशयजीने लिखा है कि ( थोड़े समयकी बात हैं बुद्धिसागर नामा खरतरगच्छीय
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