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: २० तेवीशमा-लौकिक पञ्चाङ्गमें दो चतुर्दशी होती है उन्हीके मुजब आप लोगोंके पूर्वजोंने भी दो चतर्दशी लिखी है जिसको आप लोग नही मानते हो और लौकिक पञ्चाङ्ग मुजव युक्तिपूर्वक कालानुसार और पूर्वाचार्योंकी परम्परासें दो चतुर्दशी वगैरह पर्व तिथियांको माननेवालेको दूषण लगाके निषेध करते हो सो भी उत्सत्र भाषण है। - २४ चौवीशमा-आपके पूर्वज कृत ग्रन्यमें तिथिका शुद्धाशुद्ध सम्बन्धी जो प्रमाण बताया है उसी मुजब आप लोग नही मानते हो और स्वच्छन्दाचारीसै ( अपनी मति की कल्पना करके) संपूर्ण प्रथम पर्वतिथिको अपर्व ठहरा करके दूसरी-दो अथवा तील पल ( एक मिनिट) मात्र की अल्पतर तिथिमें जाते हो और दूसरे-कालानुसार युक्ति पूर्वक तथा विशेष धर्मपद्धिके लाभका कारण जामके प्रथम संपूर्ण.६० पड़ीही पर्वतिथिको मानते हैं तैसही दूसरी पर्वतिथिको भी यथायोग्य मानते हैं जिन्होको दूषण लगाके निषेध करते हो सो भी उत्सूत्र भाषस है। .... .... इस तरहकी अनेक बातें आपलोगों में उत्सूत्र भाषणकी हो रही है जिसका तथा आपके गुरुजी श्रीन्यायाम्भो निषिजीने भी जैन सिद्धान्त समाचारी पुस्तकका नाम रखके अनुमान ५० जगह उत्सूत्र भाषण करा है जिसका भी नमुनारूप थोड़ीसी बातें आगे लिखने में आवेंगे और उपरकी सब बातोंका निर्णय शस्त्रों के प्रमाणसें और युक्तिपूर्वक मेरे लिखीत इन्ही ग्रन्यको आदिसें अन्त तक स्थिरचित्तसें सत्यग्राही होकर निष्पक्षपातसे मध्यस्य दृष्टि रखकर विशुद्धभावसे पढ़नेवाले आत्मार्थी सज्जम पुरुषों को अच्छी तरहसे मालूम हो सकेगा ;-. .. . .
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