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[ २८ ] स्कारादि तथा पर मवमें और भवो भव, सूब गहरी वारं. पार नरकादिमें शिक्षा मिलती है इस बातका विचार सज्जन पुरुष जब करते हैं तब तो आपके गुरुजन न्यायांभोनिधिजी वगैरहको और आपके गच्छवासी हठग्राही जो जो पूर्व उत्सूत्र भाषक हुए है तथा वर्तमानमें आप जैसे है और भी आगे होगे उन्होंको क्या क्या शिक्षा मिलेगा सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने क्योंकि आप लोग उत्सव भाषणकी अनेक बातें कर रहे हो जिसमेंसें थोड़ीसी बाते नमुना रूप इस जगह लिख दिखाता हूं;...१ प्रथम-अधिकमासको गिनती में निषेध करते हो सो उत्सूत्रभाषण है। - दूसरा-अधिकमास होनेसे तेरह मासोंके पुण्यपापादि कार्य करके भी तेरह मासोंके पापकृत्योंकी आलोचना नही करते हो और दूसरे तेरह मासीके पापकृत्योंकी आलो. पना करते है जिन्होंको दूषण लगाके निषेध करते हो तो भी उत्सूत्र भाषण है। ..
३ तीसरा-श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी मानानुसार अधिक मासको गिनतीमें प्रमाण करनेवालीको मिथ्या दूषण लगति हो सो भी उत्सूत्र भाषण है।
४ चौथा-जैन ज्योतिषाधिकारे सर्वत्र शास्त्रों में अधिक मासको गिनतीमें अच्छी तरहसें खुलासके साथ प्रमाण करा है तथापि आप लोग जैन शास्त्रों में अधिक मासको गिनती में प्रमाण नहीं करा है ऐसा प्रत्यक्ष महा मिथ्या बोलते हो सो भी सत्सूत्र भाषण है। ...५ पांचमा-पर्युषणाधिकारे सर्वत्र जैन शास्त्रों में आषाढ़
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