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[ ] और सप्टेम्बर मासकी २७ मी तारीख सन् १९०८ आश्विन शुक्र २ वीर संवत् २४३४ के रविवारका मुम्बई में प्रसिद्ध होनेवाला जैन पत्रके २४ वें अङ्कके पृष्ठ ४ में गत वर्षे न्यायरत्नजीकी तरफसे लेख प्रसिद्ध हुवा हैं जिसमें खास करके श्रीखरतरगच्छ वालोंको श्रीमहावीर स्वामीजीके ६ कल्याणकके सम्बन्धमें पूछा हैं और आपने श्रीहरिभद्र सूरिजी महाराजके तथा श्रीअभयदेवसरिजी महाराजके विरुद्धार्थ में श्रीपञ्चाशक मूलसूत्रका तथा तवृत्तिका अधूरा पाठ लिखके श्रीमहावीर स्वामीजीके पांच कल्याणक स्थापन करके ६ कल्याणकका निषेध किया है सो उत्सूत्र भाषण करके अनेक सूत्र, चूर्णि, वृत्ति, प्रकरणादि शास्त्रों के पाठोंका उत्थापन करके श्रीगणधर महाराजके, श्रीश्रुत केवली महाराजके, पूर्वधर महाराजोंके और बुद्धिनिधान पूर्वाचार्यों के वचनका अनादर करते पञ्चमकालके अपने हठवादको विद्वत्ता न्यायरत्नजीने अनन्त संसारकी बढ़ाने . वाली प्रसिद्धकरी हैं जिसकी समीक्षा और आगस्ट मासकी २९ वी तारीख सन् १९०९ दूसरे श्रावण सुदी १३ वीर संवत् २४३५ रविवारका जैन पत्रके २१ वें अङ्कके पृष्ठ १५ वा में जो न्यायरत्नजीकी तरफसे फिर भी लेख प्रसिद्ध हुवा हैं उसी में 'खरतरगच्छ मीमांसा, नामकी किताब छपवा कर प्रसिद्ध करके [ जैसे न्यायाम्भोनिधिजीने जैन सिद्धान्तममाधारी, पुस्तकका नाम रस्कके वास्तविक में उत्सूत्र भाषण का मिथ्यात्वरूप पाखण्डको प्रगट किया हैं ( जिसका किञ्चिन्मात्र इन्ही पुस्तकके पृष्ठ १५१ और पृष्ट २९५ । २१६ में दिखाया हैं, उसीका नमुनारूप पर्युषणा सम्बन्धी समीक्षा भी
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