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[ २३१ । लेखमें दो प्रावण होनेसे भाद्रपद तक ८० दिन होते हैं जिसके ५० दिन बनालिये और दो आश्विन होनेसें कार्तिक । तक १०० दिन होते हैं जिसके 90 दिन अपनी कल्पनासे बना लिये परन्तु श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके कषित सूत्र सिद्धान्तोंके पाठोंका उत्थापनरूप मिथ्यात्वका कुछ भी भय नही किया क्योंकि श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने अनेक सूत्र सिद्धान्तोंमें समयादि सूक्ष्मकालकी गिमतीसे एकयुगके दोनुं ही अधिक मासको गिनतीमें लिये है इसका विस्तार उपरमें अनेक जगह छप गया हैं और पद्यरूप वस्तुयोंमें एककाल द्रव्यरूप वस्तु भी शाश्वती है जिसके अनन्त कालचक्र व्यतीत होगय है और आगे भी अनन्ते कालचक्र व्यतीत होवेंगे जिसमें चन्द्र, सूर्यके, शाश्वते विमान होनेसें चन्द्रके गतिका हिसाब से अनन्ते अधिक मास भी श्रीतीर्थकर गणधरादि महाराजों के सामने व्यतीत होगये
और आगे भी होवेंगे इस लिये सम्यक्त्वधारी मोक्षाभिलाषी आत्मार्थी प्राणी होगा सो तो कालद्रव्यकी गिनतीके दो अधिक मास तो क्या परन्तु एक समय मात्र भी गिमती में कदापि निषेध नही कर सकता है तथापि न्यायरत्नजी जैनश्वेताम्बर धर्मोपदेष्टा तथा विद्यासागरका विशेषण धारण करते भी श्रीसर्वज्ञ कथित सिद्धान्तोंमें कालद्रव्य रूप शाखती वस्तुका एक समयमात्र भी निषेध नही हो सके जिसके बदले एक दम दो मासकी गिनती निषेध करके श्रीजैनश्वेताम्बरमें उत्सत्र भाषणरूप मिथ्यात्वके उपदेष्टा होनेका कुछ भी भय नहीं करते है, हा अतीव खेदः, इस लेखका तात्पर्य यह है कि जैन शास्त्रानुसार
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