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. [ १५९ ] सुमतिगणिजीका पाठ, पृष्ठ ८१ में श्रीउपाध्यायजी श्रीजय सागरजीका पाठ, पृष्ठ ८२।८६ । ९१में श्रीजिनप्रभ सूरिजीका पाठ, और पृष्ठ ८४ में श्रीजिनवम्लभ सूरिजीका पाठ इसी तरहसे शुद्ध समाचारी कारके पूर्वाचार्य श्रीखरतरगच्छ के प्रभाविक पुरुषोंका पाठ श्रीन्यायाम्भोनिधिजी अपना कार्य सिद्ध करनेके लिये तो खास मान्य करके दिखाते हैं और शुद्ध समाचारी कारने अपना कार्यसिद्ध करनेके लिये अपनेही पूर्वजोंका ( शास्त्रानुसार युक्ति सहित न्यायपूर्वक सत्य ) पाठ लिख दिखाये उसीको श्रीन्यायाम्भोनिधिजी अप्रमाणिक ठहराते हैं यह तो प्रत्यक्ष बड़े अन्यायका रस्ता श्री. न्यायाम्भोनिधिजीने ग्रहण किया है सो विशेष पाठकवर्ग स्वयं विचार लेना। ___ अब तीसरा और भी सुनो श्रीआत्मारामजीने खास ( चतुर्थ स्तुतिनिर्णयः) नामा अन्य तीन स्तुति वालोंका खण्डन करनेके लिये बनाया है सो छपा हुवा प्रसिद्ध है उसीके पृष्ठ ८३८८५ में श्रीखरतरगच्छके श्रीजिनप्रभसूरीजी कृत श्रीविधिप्रपाग्रन्यका पाठ और उसीकी भाषा पृष्ठ ८५८६ ८७८८ के आदि तक लिखके पुनः पृष्ट ८८ के मध्य में लिखते हैं कि-(इस विधिमें पडिक्कमणेकी आदिमें चारथुइसे चैत्यवंदना करनी कही है और श्रुत देवता अरु क्षेत्र देवता का कायोत्सर्ग अरु इन दोनोकी थुइ करनी कही है-इस लेखको सम्यक्त्वधारी मानते हैं और मानतेथे फेर मानेंगे भी परन्तु मिथ्या दृष्टि तो कभी नही मानेगा इस वास्ते सम्यक् दृष्टि जीवको तीन थुइका कदाग्रह अवश्य छोड़ देना योग्य है ) इस तरहसे श्रीआत्मारामजी श्रीखरतरगच्छके
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