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[ १५८ ] लिये अपने ही गच्छके पूर्वाचार्यजी श्रीजिनपति सरिजी कत ग्रन्थका पाठ दिखाया है उसको श्रीन्यायाम्भोनिधिजी अप्रमाण ठहराते हैं इस न्यायानुसार तो श्रीन्यायाम्भो निधिजीने अपना कार्यसिद्ध करने के लिये अपनेही गच्छके पूर्वाचार्यों के पाठ दिये हैं वह सर्व पाठ अप्रमाण ठहरने से श्रीन्यायाम्भोनिधिजीको अपने पूर्वाचार्योंका पाठ लिख दिखाना भी सर्व प्रथा होगया तो फिर जैनसिद्धान्त समाचारीकी पुस्तकके पृष्ठ ३१ वा में श्रीधर्मघोष सूरिजी कृत श्रीसङ्घा चार भाष्यत्तिका पाठ, पृष्ठ ३३ में श्रीदेवेन्द्रसूरिजी कृत श्रीधर्मरत्न प्रकरण वृत्तिका पाठ, पृष्ठ ३३॥ ४६ । ५२ । ५९ । ६३, में श्रीरत्नशेखरसूरिजीकृत श्रीश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र कृत्तिका पाठ, पृष्ठ ३५ में श्रीजयचन्द्रसूरिजी कृत श्रीप्रतिक्रमणगर्भहेतु नामा ग्रन्थका पाठ, पृष्ठ ४१ में श्रीविजयसेन सरिजीका प्रश्नोत्तर ग्रन्थका पाठ, और पृष्ठ ५१ । ६१ में श्री कुलमण्डन सूरिजी कृत विचारामृतसंग्रहका पाठ, इत्यादि अनेक जगह ठाम ठाम अपनेही गच्छके पूर्वाचार्योका प्रमाण श्रीन्यायाम्भोनिधिजीने लिखके वृथा क्यों अन्याय किया होगा सो पाठकवर्ग भी विचार लेना ॥
अब दूसरा सुनो-श्रीन्यायाम्भोनिधिजी जैन सिद्धान्त समाचारीकी पुस्तकके पृष्ठ १२ में श्रीखरतरगच्छके श्रीउपाध्यायजी श्रीक्षमाकल्याणजी गणिजी कृत श्रीगणधरसार्द्धशतक प्रश्नोत्तर ग्रन्थका पाठ, पृष्ठ ३॥ ३६ में श्रीखरतरगच्छके श्रीअभयदेव सूरिजीकृत श्रीभगवतीजी वृत्तिका और समाचारी ग्रन्थका पाठ, पृष्ठ ७२ । ८९में श्रीखरतरगच्छके श्रीजिनदत्त मूरिजीका पाठ, पृष्ठ ७२ में श्रीखास श्रीजिनपति सूरिजीके शिष्य श्री
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