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[ १४३ ] . मान्य करलिये तब एक रुपैया तो स्वयं मान्य होगया, तथापि निषेध करना, सो बे समझ पुरुषका काम है तैसेही तीनों महाशयों ने भी जब देवपूजा, मुनिदानावश्यक (प्रतिक्रमण) वगैरह धर्मकर्म ३० दिनों में मान्य लिये तब तो ३० दिनका एक अधिक मास तो स्वयं मान्य होगया, तथापि फिर अधिक मासको गिनती करने में निषेध करना सो हठवादसे निःकेवल हास्यका हेतु लज्जाका घर और तीनों महाशयोंकी विद्वत्ताको लघुताका कारण है ,
तथा और भी सुनिये जब इस जगह तीनों महाशय ३० दिनों में धर्मकर्म मान्य करते है जिससे अधिक मास भी गिनती में सिद्ध होता हैं फिर पर्युषणाके संबंधमें दो श्रावण के कारण भाद्रपद तक प्रत्यक्ष ८० दिन होते है जिसको निषेध करके ८० दिनके ५० दिन बनाते है और अधिक मासको निषेध करते है सो कैसे बनेगा अपितु कदापि नही, इस लिये जो ८० दिन के ५० दिन मान्य करेंगे तब तो अधिक मासके ३० दिनेमि देवपूजा मुनिदानावश्यकादि कुछ भी धर्मकर्म करनाही नहीं बनेगा और अधिक मासके ३० दिनों में धर्मकर्म करना तीनों महाशय मंजूर करेंगे तो अधिक मासके ३० दिनका धर्मकर्म गिनती में आजावेगा तब तो दो प्रावण हनेसे भाद्रपद तक ८० दिन होते है जिसका निषेध करना ही नहीं बनेगा और ८० दिने पर्युषणा करनी सो भी शास्त्रोंके प्रमाण बिना होनेसे जिनाज्ञा विरुद्ध तीनों महाशयोंके वचनसे भी सिद्ध होगई—-इस बातको पाठकवर्ग बुद्धिजन पुरुष विशेष स्वयं विचार लेना ,. और आगे फिरभी तीनों महाशयोंने अभिवर्द्धित
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