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भाद्रपद होनेसे प्रथम भाद्रपद में ही पर्युषणा करनी जिनाज्ञामुजब शास्त्रानुसार है नतु दूसरेमें, इतनेपर भी हठवादीजन शास्त्रोंके विरुद्ध होकर के भी दूसरे भाद्रपदमें पर्युषणा करेंगे तो उन्होंके इच्छाकी बात ही न्यारी है ;
और तीनों महाशय दो चतुर्दशी होनेसे प्रथम चतुर्दशी को छोड़कर दूसरी चतुर्दशी में पाक्षिक कृत्य करनेका कहते है सभी शास्त्रविरुद्ध है इसका विशेष खुलासा तिथिनिर्णयका अधिकार में आगे विस्तार पूर्वक शास्त्रों के प्रमाण सहित करनेमें आवेगा
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और अधिक मासमें देवपूजा, मुनिदान, पापकृत्यों की आलोचनारूप प्रतिक्रमणादि कार्य दिन दिन प्रति करनेका कहकर अधिक मासके तीस ३० दिनोंमें धर्मकर्मके कार्य करनेका तीनों महाशय कहते है परन्तु अधिक मासको गिनती में लेनेका निषेध करते हैं, इसपर मेरेकों तो क्या परन्तु हरेक बुद्धिजन पुरुषोंकों तीनों महाशयों की अपूर्व बालबुद्धिकी चातुराईको देखकर बड़ाही आश्चर्यको उत्पन्न हुये बिना नही रहेगा क्योंकि जैसे कोई पुरुष एक रुपैये को अप्रमाण मानता है परन्तु १६ आने, तथा ३२ आधाने और ६४ पाव आने, आदिको मान्य करता हैं और एक रुपैये को मानने वालोंका निषेध करता है, तैसेही इन तीनों महाशयोंका लेखभी हुवा अर्थात् अधिक मासके ३० दिनों में धर्मकर्म तो मान्य किये, परन्तु अधिक मासको मान्य नहीं किया और मान्य करनेवालों का निषेध किया सो क्या अपूर्व विद्वत्ता प्रगट तीनों महाशयांने किवी है, जैसे उस पुरुषने जब १६ आने तथा ३२ आध आने चौसठ पाव आने को
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