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मासको दिनोमें यावत् मुहूत्ता में भी खुलासा से प्रमाण किया है इसलिये अधिकमासकी गिनती निषेध करने वाले तीनों महाशय और इन्होंके पक्षधारी वर्तमानिक महाशय भी श्री अनन्ततीर्थङ्कर, गणधर, पूर्वधर पूर्वाचार्य्यो के और अपने ही पूर्वजों के वचनों का खण्डन करते, सूत्र, वृत्ति, भाष्य, चूर्णि, निर्युक्ति, और प्रकरणादि अनेक शास्त्रोंके पाठोंके न मानने वाले तथा उत्थापक प्रत्यक्ष बनते है और भोले जीवों को भी उसी रस्ते पहोचाते मिथ्यात्वकी वृद्धिकारक संसार बढ़ाते है । इस लिये गच्छके पक्षपातका कदाग्रहको छोड़के शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक अधिक मासको प्रमाण करनेकी सत्यबातको ग्रहण करना और सब जनसमाजको ग्रहण कराना यही सम्यक्त्व धारीसज्जन पुरुषों का काम हैं ;
और भी तीनों महाशयं चौमासी कृत्य आषाढ़ादिमास प्रतिबद्धा की तरह मास वृद्धि होने से पर्युषणा भी भाद्रपदमास प्रतिबद्धा ठहराते है को भी शास्त्रों के विरुद्ध है क्योंकि प्राचीन काल में भी मास वृद्धि होनेसे श्रावणमास प्रतिवद्धा पर्युषणाथी और वर्तमान कालमें भी दो श्रावण होनेसे कालानुसार दूजा श्रावण में पर्युषणा करने की शास्त्रकारों की आज्ञा हैं सोही श्रीखरतरगच्छादिमे करने में आती हैं इसलिये मास वृद्धि होते भी प्राचीन कालमें भाद्रपद प्रतिवद्धा और वर्तमान में दो श्रावण होते भी भाद्रपदप्रतिबद्धा पर्युषणा ठहराना शास्त्रोंके विरुद्ध है इस बातका उपर में विशेष खुलासा देखके सत्यासत्यका निर्णय पाठकवर्ग स्वयं कर सकते हैं । और जैसे चौमासी कृत्य में अधिक मासको गिना जाता है तैसे ही पर्युषणा में भी अधिक मास को
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