________________
[ १३ ] पकरणधरण मभिनवोपकरणग्रहणं स क्रोशयोजनात्परतो गमनवर्जन मित्यादि।
देखिये उपरोक्त पाठमें श्रीवत्तिकार महाराजनें चार मासके वर्षाकालमें अभिवद्धित संवत्सरमें वीस दिन और चन्द्र संवत्सरमें पचास दिन के उपरान्त विहार करने वालोंको छ कायके जीवोंकी विराधना करने वाला कहा अर्थात् वीसे और पचासे अवश्यही पर्युषणा करनी कही सो यावत् कार्तिक तक याने अभिवद्धितमें वीस दिने पर्युषणा करनेसे पीछाही १०० दिन और चन्द्रमें पचास दिने पर्युषणा करनेसे पीछाडी ७० दिन उसी क्षेत्रमें ठहरे ॥ इत्यादि ॥ .. अब श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञाके आराधन करने वाले मोक्षाभिलाषि निर्पक्षपाती सज्जन पुरुषों को इस जगह विचार करना चाहिये कि श्रीगणधर महाराज, श्रीसमवायांगजी मूलसूत्र और श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजमें वत्तिमें मास वृद्धिके अभावसें चन्द्रसंवत्सरमें जैन ज्योतिषके पंचाङ्गकी रीतिमुजब वर्तने के अभिप्रायसे चार मासके वर्षाकालमें प्रथम पचास दिन जानेसे और पीलाही ७० दिन रहने से पर्युषणा करनी कही है तथा विशेष खलासा करते वृत्तिकार महाराजने योग्यक्षत्रके अभावसे वृक्ष नीचे भी पचास दिने अवश्यही पर्युषणा करनी कही और अभिवर्द्धित संवत्सरमें वत्तिकार महाराजने और पूर्वधरादि महाराजोंने वीस दिने अवश्यही पर्युषणा करनी कही है जिससे पीछाही एकसी दिन रहते हैं; तथापि ये तीनों महाशय अपनी कल्पनासें वृत्तिकार और पूर्वधारादि महाराजों का ( अभिवर्द्धितमें वीस दिने पर्युषणा करनेसे पीछाडी एकसो
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com