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४ ] प्रतिक्रमणादि भी पूर्वधरोंके समयमें जैन ज्योतिषानुसार करने में आतेथे सो उपरमें लिख आया हु और आगे भी खुलासापूर्वक लिखुंगा वहां विशेष निर्णय होजावेगा
और आषाढ़ चौमासी प्रतिक्रमण किये बाद योग्यतापूर्वक पांच पांच दिने पर्युषणा करे सो सिर्फ एक श्रीकल्पसूत्रका रात्रिको पठण करके पर्युषणा स्थापन करे परन्तु अधिकरण दोष उत्पन्न होने के कारणसे गृहस्थी लोगों को कहे नही
और अभिवर्द्धित संवत्सरमें वीशदिने तथा चन्दसंवत्सरमें पचासदिने वार्षिक कृत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करने से गृहस्थी लोगों को पर्युषणाकी मालुम होती है सो यावत् कार्तिकपूर्णिमा तक उसी क्षेत्रमें साधु ठहरे सर्वपा प्रकारसे एक स्थानमें निवास करना सो पर्युषणा कही जाती है इस लिये आषाढ़ चौमासी पीछे योग्यतापूर्वक जहां निवास करे उसीको पर्युषणा कहते हैं सो अज्ञात पर्युषणा कही जाती है और चन्द्र संवत्सरमें पचास दिने तथा अनिवर्द्धितमें वीशदिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करने से ज्ञात पर्युषणा कही जाती है इसका विशेष विस्तार आगे भी करने में आवेंगा
और श्रीदशाश्रुतस्कन्धपूर्णिके तीस (३०)के पष्ठमें (पडमंकाल ठवणा भणामि किंकारमण एवं सुत्त काल ठवणाएसुत्ता देसैण परवेय कालो समयादिओ,गाथा-असंखेज्जसमया आवलिया एवं सुत्तालावएमजावसंबच्छरं एत्यपुणउदूवढे वासारतेणपयगंतं अधिकारेत्यर्थः ) इत्यादि व्याख्या प्रथम किवी हैं सो इस पाठमें कालकी व्याख्यासूत्रानुसार करनी कही है। समयादि काल करके असंख्याते समय जाने से एक
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