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लगाइ कययभूमीय बद्ध वासंच गाद भणोरयं आढ़त, ताहे आसाढ़पुमिमाए घेव पज्जोसविज्जति, एवं पंचाहं परिहाणि मविकृत्योच्यते, इय सत्तरी गाथा, इय प्रदर्शने आसाढचात मासिया तो सवीसति राते मासे गते पज्जोसति, तेसि सत्तरी दिवसा जहमतो जेट्ठोग्गही मति, कहं पुण सत्तरी, चरगह मासाणं सवीसं दिवस सतं भवति, ततो सवीसत्ति रातो मासो, पसास दिवसा सो वितो सैसा सत्तरी, दिवसा ने भदवय बहुलस्स दसमीए पज्जोसवेंति, तेसिं असीति दिवसा जेटोग्गहो, जे सावण पुसिमाए पज्जासति तेसिं णउतिदिवसा जेट्ठोग्गहो, जे सावण बहुल दसमी ठिता तेसिं दसुत्तरं दिवससतं जेटोग्गहो, एवमादीहिं पग्गारेहिं परिसारत्तं एग खेत्ते अत्थिता कत्तिय चाउमासिए णिग्गंतवं, अह वासण तवरमति, तो मग्गसिरे मासे जं दिवस पक्क मद्वियं जात तदिवस चेव निग्गंतवं, उक्कोसेण तिमि दसराया न निग्गच्छज्जा मग्गसिर पुसिमाएत्ति भणिय होइर मग्गसिर पुसिमाए परेण, जइविप्लवंतेहिं तहवि णिग्गंतवं, अथ न निग्गच्छंति तो धउलहुग्ग, एवं पंचमासिकं जेटोग्गहो जाओ, काउण गाहा॥ आसाढ़मासकप्पं काउं जत्य अन्न वासा वासे पाउपगं जत्य आसाढमासकप्यो को तत्य व पज्जोसविते आसाढ पुलिमाए वा सालंबणाणं मग्गसिर पिसछ, वासा णतो विरमति तेण पा निग्गता भसीवादीणिवा वाहिपवं सालंवणाणं छमासि तो जेट्ठोग्गहो॥ इत्यादि ॥
और श्रीजिनदास महत्तराचार्यजी पूर्वधर महाराज कत श्रीनिशीथ सूत्रकी चूर्णिके दशमे उद्देशेके पृष्ठ ३२९ सै पृष्ठ ३२४ तक का पर्युषणा सम्बन्धीका पाठ नीचे मुजब जानो, यथा
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