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श्रीआत्मारामजी ठहरे, आप कोई कार्य करना अथवा आप आज्ञा देकर कोई कार्य कराना सो भी बरोबर है जिससे मैंने श्रीआत्मारामजीका नाम लिखा है इसी न्यायसै श्रीधमविजयजीका भी नाम जानो-कदाचित् कोई ऐसा कहेगा कि गुरु महाराजकी आज्ञाविनाही प्रसिध कर दिवी होगी तो इसपर मेरा इतनाही कहना है कि गुरु महाराजकी आज्ञा विना जो कोई भी कार्य शिष्य करे तो उसको गुरु आज्ञा विराधक अविनित तथा अनन्त संसारी शास्त्र कारोंने कहा हैं ऐसेको हितशिक्षारूप प्रायश्चित्त दिया जाता हैं तथापि अविनित पमेसें नही माने तो अपने गच्छसे अलग करनेमें आता है सो बात प्रसिद्ध है इसलिये जो श्रीआत्मारामजीकी आज्ञासे जैन सिद्धान्तसमाचारीकी पुस्तक तथा श्रीधर्मविजयजीकी आज्ञासै पर्युषणा विचारकी पुस्तक प्रसिद्ध हुई होवे तब तो उस दोनो पुस्तकमें शास्त्रकारों के विरुडार्थमें अधूरे अधूरे पाठ लिखके उत्सूत्रभाषणरूप अनुचित बाते लिखी है जिसके मुख्य लाभार्थी दोनो गुरुजन है इसी अभिप्रायसे मेंने भी दोनो गुरुजनके नाम लिखे हैं
और अब उपरोक्त महाशयोंके लिखे लिखोंकी समीक्षा करते हैं जिप्तमें प्रथम इस जगह श्रीविनयविजयजी कृत श्रीकल्पसूत्रकी सुबोधिका ( सुखबोधिका ) वृत्तिविशेष करके श्रीतपगच्छमें प्रसिद्ध हैं तथा वर्तमानिक श्रीतपगच्छके साधु आदि प्रायः सब कोई शुद्ध अदापूर्वक सरल जानके उसीको हर वर्षे गांव गांवके विषे श्रीपर्युषणापर्वमें वांचते हैं जिसमें अधिक मासकी गिनती निषेध करनेके लिये लिखा हैं जिसको यहाँ लिखकर पीछे उसी में जो अनुचित्त है
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