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. [ ५८ ] सो विभूषणा कहो, शोभारूप कहो, शिखररूप कहो, विशेष सुन्दरता मुगटरूप कहो अथवा चूलारूप कहो, सब मतलबका तात्पर्य एकार्थका हैं इसलिये गिनती करने योग्य है और जैसे द्रव्य, भाव, नाम, स्थापनासें चार निक्षेपे कहे हैं सो मान्य करने योग्य है तथापि द्रव्य, स्थापनादि का निषेध करने वालोंकों (श्रीखरतरगच्छवाले तथा श्रीतपगच्छादि वाले सर्व धर्मवन्धु ) मिथ्यात्वी कहते हैं तैसे ही द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे जो चूला कही है सो अनादिकालसें प्रवर्त्तना सरू हैं श्रीतीर्थङ्करादि महाराजोंने प्रमाण किवी है सो आत्मार्थियोंकों प्रमाण करके मान्य करने योग्य है तथापि क्षेत्रकालादि दूलायोंकों गिनतीमें मान्य नही करते उलटा निषेध करते हैं और जो मान्य करते हैं जिन्होंको दूषण लगाते हैं ऐसे श्रीतीर्थङ्करादि महाराजां के विरुद्ध वर्तने वाले विद्वान् नामधारक वर्तमानिक महाशयोंको आत्मार्थी पुरुष क्या कहेंगे जिसका निष्पक्षपाती श्रीखरतरगच्छके तथा श्रीतपगच्छादिके पाठक वर्ग स्वयं विवार लेवेंगे___ और अधिक मासको कालचूला कहनेसे भी गिनतीमें निषेध कदापि नही हो सकता है किन्तु अनेक शास्त्रोंके प्रमाणांसें श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजांकी आज्ञानुसार अवश्यमेव गिनती में प्रमाण करणा योग्य है तथापि जैन सिद्धान्त समाचारीकारने कालचूलाके नाममें अधिकमासकी गिनती उत्सूत्रभाषणरूप निषेध किवी है जिसका उतारा प्रथम इसजगह लिख दिखाते हैं और पीछे इसकी समालोचनारूप समीक्षा कर दिखावेंगे, जैनसिद्धान्त समाचारीके पृष्ठ ९०की
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