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कारण यह है कि यह मास इस संवत्सर में वारहमासों से अधिक पड़ा इसलिये इसका नाम भी अर्थानुसार है इसकी गणनाके बिना अर्थानुसार नाम अभिवर्द्धित संवत्सरका न होगा न होनेसे असङ्गति दोष रहता है यह चिन्तन करना चाहिये । अब अधिक मासकी गिनती नही करने वाले महाशय तेरह चन्द्रमासोंके बिना अभिवर्द्धित संवत्सर कैसे बनायेंगे क्योंकि तेरह चन्द्रमासोंके बिना अभिवर्द्धितसंवत्सर नही हो सकता हैं तथा अभिवर्द्धित संवत्सर के बिना एकयुगके ६२ चन्द्रमासोंकी ६२ अमावस्या और ६ पूर्णिमासी १२४ पाक्षिकोंकी गिनती नही बन सकेगा इस लिये कालचूलारूप अधिक मासकी गिनती करनेसें अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह चन्द्रनातोंकी गिनतीसें होता है सोही श्रीअनन्ततीर्थङ्कर गणधर पूर्वाधरादि पूर्वाचार्य तथा खरतरगच्छके और तपगच्छादिके पूर्वाचाय्यने अधिकमासकों दिनोंमें पक्षों में माहोंमें वर्षों में गिनती में प्रमाण करके एकपुगके ६२ चन्द्रमासोंके १८३० दिनोंकी गिनती कही है सो उपरोक्त शास्त्रोंके पाठोंसे लिख आये हैं जिससे जनाज्ञाके आराधक आत्मार्थी पुरुषोंको अधिक मासकी गिनती मंजूर करनी चाहिये इसके लिये आगे युक्ति भी दिखायेंगे इति कालचूला सम्बन्धी किञ्चित् अधिकार-
और चौथी भावचूला भी आगमसें तथा को आगमसें क्षयोपशमादिकी व्याख्या प्रसिद्ध हैं और श्रीदशवेका लिकजी सूत्रकी दो चूला तथा श्रीआवाराङ्गजी सूत्रकी दो चूला और मन्त्राधिराज महामङ्गलकारी श्रीपरमेष्टिमन्त्रकी चार चूला इत्यादि सब भावचूला कही जाती हैं
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