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२० दिने तथा ५० दिने जात याने गृहस्थी लोगोंकी जानी दुई प्रसिद्ध पर्युषणा करे से यावत् कार्तिकतक सो क्षेत्रमें ठहरे और जघन्यसे 90 दिन, तपा मध्यमसे १२० दिन और उत्कृष्ट १८० दिनका कालावग्रह होता है। .. और भी पर्युषणा सम्बन्धी-भाष्य, चूर्णि, कृत्ति, समाचारी, तथा प्रकरणादि ग्रन्थों के अनेक पाठ मौजूद हैं परन्तु विस्तारके कारणसे यहां नहीं लिखता हूं। तथापि श्रीदशाश्रुत स्कन्ध सत्रको पूर्णि, श्रीनिशीषपूर्णि,श्रीवहत्कल्पचूर्णि वगैरह कितनहीं शास्त्रों के पाठ आगेप्रशांगापात लिखने में भी आवेंगे।
अब मेरा सत्यग्रहणाभिलाषी श्रीजिनाजा इच्छुक सज्जन पुरुषोंको इतमाही कहना है कि वर्तमानकालमें जैन पञ्चाङ्गके अमावसे लौकिक पञ्चाङ्गानुमार जिस भासकी वृद्धि होवे उसीके ३० दिनमें प्रत्यक्ष पने सांसारिक तथा धार्मिक व्यवहार सब दुनियां में करने में आता है तथा समय, आवलिका, मुहुतादि शास्त्रोक्त काल के व्यतीतकी व्याख्यानुसार और सूर्योदयसे तिथि वारों के परावर्तन करके दिनोंकी गिनती निश्चयके साथ प्रत्यक्ष सिद्ध है तथापि उसीकी गिनती निषेध करते हैं सा निष्केवल हठवादसे संसार एद्धिकारक सत्सूत्र भाषणरूप बाट जीवोंको मिथ्यात्वमें गेरमेके लिये वृथा प्रयास करते हैं इसलिये अधिक मास के दिनांकी गिनती पूर्वक उपरोक्त व्याख्याओं के अनुसार आषाढ़ चौमासीसे ५० दिने दूसरे प्रावण वा प्रथम प्राद्रपद में पर्युषणा करना सो श्रीजिनापाका आराधनपना है। इसलिये-मैं-प्रतिज्ञा पूर्वक आत्मार्थियोंको कहता हूं कि-वर्तमानिक श्रीतपगच्छके मुनिम. पडली वगैरह विद्वान् महाशय पक्षपात रहित हो करके विवेक बुद्धिसे उपरोक्त श्रीकल्पसूत्रकी व्याख्याओंका तात्पयार्थको विचारेंगे तो मासवृद्धि होनेसे अपने पूर्वजांकी
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