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सर्वत्र पायी जाती है । और इस भावना को सफल करने के लिये लोग यथाशक्य, यथारुचि, प्रयत्न भी करते हैं । बेशक, संसार में एक 6 साध्य ' के पीछे साधन अनेक होते हैं । और भिन्न भिन्न साधनों द्वारा अपने अपने साध्य की सिद्धि के लिये लोग प्रयत्न करते हैं । इसके लिये भिन्न भिन्न साधनों जैसे कि-भक्ति, तपस्या, ज्ञान, क्रिया, योग, दान, ब्रह्मचर्य, भावना, समाधिइत्यादि द्वारा लोग प्रयत्न कर रहे हैं; परन्तु प्रायः देखा जाता है कि एक साधन की साधना में दूसरे आवश्यकीय साधनों की तरफ सर्वथा उपेक्षा की जाती है। ऐसा होने से शास्त्रकारों की दृष्टि से अपने ' साध्य ' तक पहुंचना अशक्य ही नहीं, असंभवसा होता है।
इस लिये स्वर्गीय जगत्पूज्य शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्री विजयधर्मसूरि महाराजने इस निबंध में यह दिखलाया है कि- मोक्ष प्राप्ति का राजमार्ग कौनसा है कि जो किसी के लिये भी असम्मत न हो, और जिसमें और सब साधनों का समावेश भी हो जाता हो। ऐसा मार्ग आपने दिखलाया है: दर्शन, ज्ञान और चारित्र । तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वातिवाचक ने मोक्ष का मार्ग यही दिखलाया है: " सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्राणि मोक्षमार्गः । " हिंदुधर्मशास्त्रों के शब्दों में कहा जाय तो " सत्-चित और
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