________________
( ३६ ) किया है । बौद्ध दश प्रकार के कुशल धर्म कहते हैं। वे इस प्रकार हैं। हिंसा, चोरी, परदारगमन, पैशून्य, कठोर वचन, असत्यवाद, असंबद्धभाषण, परपीडाचिन्तन, परिग्रह और मिथ्याभिनिवेश-इन दश पाप कर्मों को मन, वचन और शरीर से त्याग करना चाहिये । इसी तरह वैदिक आदि संप्रदायवाले अहिंसा आदि धर्मों को 'ब्रह्म' आदि शब्दों से स्वीकार करते हैं । इस वास्ते धर्म की व्याख्या में सबका एकमत-समानता होने से अहिंसा आदि का प्रतिपादन करनेवाला धर्मशास्त्र अर्थसंगत है। अर्थात् सर्व
उपर्युक्त श्लोकों के अन्तिम वाक्य से सुस्पष्ट विदित होता है कि- अहिंसा आदि धर्म का आदर सभी को मान्य है । तथापि आश्चर्य का विषय है कि
अहिंसा परमो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः । इस वाक्य की चरितार्थता जैनसमाज के अतिरिक्त दूसरे किसी समाज में कचित् ही दृष्टिगोचर होती है । अस्तु । इस विषय पर अधिक विवेचन नहीं करते हुए आगे बढ़ने की चेष्टा करें।
इस तरहसे चारित्र धर्म की स्वीकृति शब्दान्तर से समस्त आस्तिक करते हैं। परन्तु वर्तमान समय में स्वेच्छा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com