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( २१ ) यदि गुणस्थानवर्ती, अकामनिर्जरावान् एवं बालतपस्वी आदि देवायुष्य का भागी होता है । -
ऋद्धिगौरव, रसगौरव एवं सातागौरवरहित सरलपरिणामी जीव शुभनाम कर्म बांधता है और इस से विपरीत लक्षणवाला जीव अशुभनाम कर्म उपार्जन करता है
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गुणों को देखनेवाला, मदरहित, पठन-पाठन में उद्यमी, अर्हदादि की भक्ति करनेवाला प्राणि ऊंच गोत्रकर्म बांधता है और इससे विपरीत लक्षणवाला जीव नीचगोत्र कर्म उपार्जन करता है ।
हिंसक तथा देवाधिदेव की पूजा में विघ्न करनेवाला अन्तरायकर्म बांधता है ।
पूर्वात अष्टकर्मरूपी महामलीन मल आत्मा पर लगने से प्राणी संसारचक्र में जन्म, जरा, मृत्यु आदि करता है । अनेक दुःखों की परंपरा को भोगता है । दुःख को सुख रूप मान कर मिथ्याभिमानी बनता है। किसी समय थक कर धर्म की इच्छा करता है, परन्तु किसी समय धर्म को भी अधर्म समझता है । कभी २ मोक्षाभिलाषी बनता है, तो कभी मोक्ष को एक कल्पित चीज
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