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आदि करने से जीव ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय कर्म बांधता है।
देव-गुरु आदि की प्रेमपूर्वक भक्ति, जीवदया तथा क्रोध, मान, माया, लोभादि आन्तरिक शत्रुओं के विजय द्वारा, दातृत्व और सद्धर्मयुक्त ऐसा जीव शातावेदनीय कर्म बांधता है। और उस से विपरीत आचरणवाला पाणी अशातावेदनीय कर्म बांधता है।
उन्मार्ग का पोषण करनेवाला, धर्ममार्ग का लोप करनेवाला, धर्मिष्ठ वर्ग की निंदा करनेवाला तथा देवद्रव्यादि का भक्षण करनेवाला जीव दर्शनमोहनीय कर्म उपार्जन करता है। और कषाय, हास्य एवं विषयादि द्वारा प्राणी चारित्रमोहनीय कर्म बांधता है।
महारंभ, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय का वध और मांसाहार करनेवाला तथा मृषावादी जीव नरक का आयुष्य बांधता है। मनुष्यों को ठगनेवाला, और शल्य (माया शल्य-निदान शल्य-मिथ्यात्व शल्य ) युक्त जीव तिर्यग् आयु बांधता है। मध्यम गुणवान् स्वभाव से अल्पकषायवाला, दान-शील-तप और भावादि में रुचिवाला, तथा सरलाशय जीव मनुष्य आयुष्य बांधता है । तथा चतु
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