________________ [ 736 ] अलग होनेका कारण खुलासा पूर्वक बतलाना होगा, नहीं तो हम ऊपरमें लिख आये हैं उस मुजब मानना पड़ेगा अन्यथा अन्तर मिथ्यात्वियोंमें अन्याय सूप अधर्म रहता ही है सो तत्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवेगे। ___ और खरतर गच्छ वालोंके लिखे मूजब रहत् खरतर लिखा मानो तो उनके लिखे मूजब इस गच्छकी उत्पत्ति और गच्छभेद भी मान लो अन्यथा एकको मानोंगे एकको नहीं यह तो प्रत्यक्ष अन्यायकी बात है। ___ और कलिकाल सर्वज्ञ समान श्रीहेमचन्द्राचार्यजी, वादिवेताल श्रीशान्ति सूरिजी, न्यायविशारद श्रीयशोविजयजी, मीखरतर गच्छकी रुद्रपल्लीय शाखाके वादीसिंह श्रीअभयदेव रिजी, वगैरह अनेक प्रभावक पुरुषोंको विरुद मिलने सम्बन्धी कारण, कार्य, सभा, विषय, राजा, विद्वानोंका समुदाय, संवत्, वगैरह कितनीही बातोंका प्रमाण नहीं मिलता है तो भी वे सब विरुदतो मानने में आते हैं और श्रीजिनेश्वर सूरिजी सम्बन्धीअनेक शास्त्रोंके, पहावलियोंके, चरित्रोंके, प्रमाण मिलते हैं और श्रीतपगच्छके पूर्वाचार्य मान्य करते हैं और 13 भेद वगैरह प्रत्यक्ष प्रमाण भी मिलते हैं जिसपर भी व्यर्थ कुयक्तियोंकी आड़ लेकर सत्य बातके निषेध करनेके आग्रहमें फसना सो तो प्रत्यक्ष ही अभिनिवेशिकका कारण मालूम होता है पोंकि सब विरुदोंको तो मानना और एकको नहीं मानना यह अन्याय आत्मार्थियोंसे कदापि नहीं हो सकता इसको विशेषतासे विवेकीजन स्वयं विचार लेवेंगे। शङ्का-अजी आप श्रीजिनेश्वर सूरिजीसे खरतर गच्छकी परम्परा शुरू होनेका मानते हो और मीनवांगी वृत्तिकार श्रीअभयदेव मूरिजीको खरतर गच्छके कहते हो तो इन महाराजने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com