________________ [ 735 ] किस 2 आचार्यसे किस 2 वर्ष उत्पन्न हुई इसका भी तो खुलासा अवश्यमेव करना पड़ेगा क्योंकि इन दोनों शाखाओंका प्रत्यक्ष प्रमाण खरतर गच्छमें मिलता है इससे इन दोनों शाखाओंसे भी खरतर गच्छ पहिलेका ही सिद्ध होता है जिसपर भी कितने ही अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे इस प्रत्यक्ष प्रमाणको सत्य बातको भी नहीं मानकर इनका निषेध करनेका आग्रह करनेवालोंको ऊपरकी दोनों शाखाओंका खुलासा अवश्य दिखलाना पड़ेगा अन्यथा जिस गच्छके आचार्यो के शिष्य प्रशिष्यादि परम्परामें मूल गच्छकी शाखा प्रशाखा भी जिसके पहिले अलग हो चुकी उस गच्छको शाखा प्रशाखाओंके पीछे उत्पन्न होनेका ठहरानेका साहस करना सो तो पोता प्रपोताकी उत्पत्ति पहिले, और उनके दादाकी उत्पत्ति पीछे मानने जैसी न्यायांभोनिधिजी वगैरहोंका कथन बाललीला समान ठहरता है उसको विवेकी तत्वज्ञजन अच्छी तरहसे विचार सकते हैं। तथा और भी न्यायांभोनिधिजीके समुदाय वालोंको इस बातपर भी विचार करके निर्णय दिखाना पड़ेगा कि खास न्या. यांभोनिधिजीने 'चतुर्थ स्तुति निर्णय' की पुस्तकमें श्रीजिनपति सूरिजीको वृहत् खरतर गच्छके लिखे हैं और “जैनतत्वादर्श" तथा “जैनसिद्धान्त समाचारी" की पुस्तकमें 1204 में खरतर गच्छकी उत्पत्ति लिखते हैं तो 1204 पीछे किस वर्ष किस आचार्यसे किस कारण किस ग्राममें खरतर गच्छकी कौन कौन शाखा अलग अलग जुदी 2 निकली उससे वहत खरतर लघु खरतर वगैरह कहलाने लगे क्योंकि लघुके बिना तो वहत् नहीं हो सकता है और न्यायांभोनिधिजी श्रीजिनपति सूरिजीको 'चतुर्थस्तुतिनिर्णय' की पुस्तक रहत् खरतर गच्छके लिख चुके हैं इसलिये लघु होनेका और मधुकर रुद्रपल्लीय वगैरह गट्टी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com