________________
[ ७२० ] ग्रन्थों में, चरित्रों में, और यावत् श्री आबुजी, विजापुर वगैरहके जैन मन्दिरोंके शिला लेखोंमें भी ऊपर मुजब ही पूर्वाचार्यों की परम्परा लिखी है परन्तु यहां विस्तार के कारणसे सब पाठ नहीं लिख सकता जिसके देखने की इच्छा होवे तो “सामाचारी शतक" तथा "शुद्ध समाचारी प्रकाश” और “जैन इतिहास" वगैरह ग्रन्थोंको देख लेवें;
और कितनी ही जगह तो श्रीजिनेश्वरसूरिजी महाराजको अणहिलपुर पट्टणमें संवत् १०८४ में श्री दुर्लभ राजाने चैत्यवासियोंको जितनेसे 'खरतर' विरुद दिया ऐसा भी लिखा है परन्तु ऊपरके प्रमाणों में तो १०८० लिखा है। और ऊपरके बहुत प्रमाणोंमें तो दुर्लभ राजा लिखा है परन्तु श्री तपगच्छके सोमधर्मगणिजीने “उपदेश सत्तरि" नामा ग्रन्थमें तथा "मोहन चरित्रमें" और कितनी ही पहावलियों में भीमराजा भी लिखा है, इस लिये संवत १०८० का, या, १०८४ का, और दुर्लभ राजा था, या भीमराजा, इन दोनों बातोंके पाठांतर मतभेदका निर्णय तो श्री ज्ञानीजी महाराजके सिवाय वर्तमान कालमें होना कठिन है, और कितनी जगह श्री जिनेश्वरसूरिजीके संसारी नामों में और चरित्रों में भी मतभेद मालूम होता है जिसका निर्णय तो श्री ज्ञानी जाने और कितनी जगह तो श्री जिनेश्वरसूरिजी अपने गुरु भाई श्री बुद्धिसागरजीको साथ लेकर पाटण गये थे ऐसा लिखा है और कितनी ही जगह श्री वर्द्धमान सूरिजी वगैरह १८ साधुओंके साथ पाटण गये थे ऐसा भी लिखा है।
परन्तु चाहे जो हो यह बात तो सभी प्रमाणोंसे अच्छी तरहसे सिद्ध होती है कि भी जिनेश्वरसूरिजीसे
विहित (खरतर ) सन्तती अर्थात खरतर (सुविहित ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com